________________
___ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ कर्मक्षय से मोक्ष
मोक्खो ? .
...
. - १५५ उत्तर-एवं खलु मए गोयमा ! दुविहे कम्मे पण्णत्ते । तं जहाः-पएसकम्मे य, अणुभागकम्मे य, तत्थ णं जं तं पएसकम्म तं नियमा वेएइ, तत्थ णं जं तं अणुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेएइ, अत्यंगइयं णो वेएइ, णायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया-इमं कम्मं अयं जीवे अब्भोवगमियाए वेयणाए वेदेस्सइ, इमं कम्मं अयं जीवे उवक्कमियाए वेदणाए वेदेस्सइ, अहाकम्म, अहानिगरणं जहा जहा तं भगवया दिटुं तहा तहा तं विप्परिणमिस्सतीति । से तेणटेणं गोयमा ! नेरइयस्स वा जाव-मोक्खो ।
विशेष शब्दों के अर्थ-अवेइअत्ता-भोगबिना, मोक्खो-मोक्ष = छुटकारा, पएसकम्मेप्रदेशकर्म, अणुभागकम्मे-अनुभागकर्म, अब्भोवगमियाए-आभ्युपगमिक-स्वेच्छा से स्वीकृत, उवक्कमियाए-औपक्रमिक-अज्ञान पूर्वक सही जानेवाली वेदना, अहाकम्म-बाँधे हुए कर्म के अनुसार, अहानिगरणं-निकरणों के अनुसार अर्थात् देश कालादि की मर्यादा के अनुसार।
. भावार्थ-१५४ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पापकर्म किया है, क्या उसे भोगे बिना नारकी, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का मोक्ष नहीं होता है ?. . . .
१५४ उत्तर-हाँ, गौतम ! किये हुए कर्म को भोगे बिना नारको, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का मोक्ष नहीं होता।
. १५५ प्रश्न-हे भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि कृतको को भोगे बिना नारको यावत् देव किसी का भी मोक्ष नहीं होता ?
१५५ उत्तर-हे गौतम ! यह निश्चित है कि-मैंने कर्म के दो भेद बताये हैं। वे इस प्रकार हैं-१ प्रदेशकर्म और २ अनुभाग कर्म । इनमे जो प्रदेश कर्म है वह अवश्य भोगना पड़ता हैं और जो' अनुभाग कर्म हैं, वह कुछ वेदा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org