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भगवती सूत्र - श. १ उ. ४ उपस्थान - परलीक की क्रिया
उत्तर - हे गौतम! दस प्रकार का कहा गया है । यथा श्रोत्रावरण, श्रोत्र विज्ञानावरण आदि । श्रोत्र आदि पांच द्रव्येन्द्रियों का आवरण और श्रोत विज्ञान आदि पांच भावेन्द्रियों का आवरण ।
इस तरह पन्नवणा सूत्र के 'कर्मप्रकृति' पद के अनुसार वर्णन करना चाहिए ।
उपस्थान - परलोक की क्रिया
१४७ प्रश्न- जीवे णं भंते! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिष्णेणं उवट्टाएजा ?
उवडाएजा ।
१४७ उत्तर - हंता, १४८ प्रश्न - से भंते! किं वीरियत्ताए उवट्टाएज्जा, अवीरित्ताए 'उवट्टाएजा ?
१४८ उत्तर - गोयमा ! वीरियत्ताए उवट्टाएजा णो अवीरियताए उवट्टाएजा ।
१४९ प्रश्न - जइ वीरित्ताए उवट्टाएजा, किं बालवीरियत्ताए उबट्टाएज्जा, पांडेयवीरियत्ताए उवट्टाएज्जा, बालपंडियवीरियत्ताए उवडाएज़ा ?
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१४९ उत्तर- गोयमा ! बालवीरियत्ताए उवट्टाएजा णो पंडिय वीरित्ताए उवट्टाएज्जा, णो बालपंडियवीरियत्ताए उवट्टाएजा ।
विशेष शब्दों के अर्थ -- उबट्ठाएज्जा — उपस्थान ( परलोक की क्रिया) करता है, मीरियताए --- वीर्य से, अबीरियत्ताए - अवीर्य से ।
भावार्थ - १४७ प्रश्न - हे भगवन् ! जब मोहनीय कर्म उदय में आया हुआ हो तब क्या जीव उपस्थान- परलोक की क्रिया करता है ?
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