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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ कांक्षा मोहनीय कर्म
उदीरसु, उदीरेंति, उदीरिस्संति, वेदेंसु, वेदेति, वेदिस्संति, निजरेंसु, निजरेंति, निजरिस्संति । गाहा
कड-चिया उवचिया, उदीरिया वेदिया य निजिण्णा । आदितिए चउभेदा, तियभेया पच्छिमा तिण्णि ॥
विशेष शब्दों के अर्थ-कंखामोहणिज्जे-कांक्षामोहनीय, कडे-किया, करिसुकिया, अभिलावेणं-अभिलाप मे-कथन से, करेंति-करते हैं, करिस्संति-करेंगे।
भावार्थ-११२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीवों का. कांक्षामोहनीय कर्म कृत-क्रिया-निष्पादित अर्थात् किया हुआ है ?
११२ उत्तर-हाँ गौतम ! कृत है।
११३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है, देश से सर्वकृत है, सर्व से देशकत है या सर्व से सर्वकृत है ? - ११३ उत्तर-हे गौतम ! वह देश से देशकृत नहीं है, देश से सर्वकृत नहीं है, सर्व से देशकृत नहीं है, सर्व से सर्वकृत है।
११४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नरयिकों का कांक्षामोहनीय कर्म, कत है ?
११४ उत्तर-हाँ गौतम ! कृत है, यावत् सर्व से सर्वकृत है । इसी तरह यावत् चौबीस ही दण्डकों में वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। . ११५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीवों ने कांक्षामोहनीय कर्म उपार्जन किया है ?
११५ उत्तर-हां, गौतम ! किया है। ". ११६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देश से देशकृत है ? इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न करना चाहिए।
११६ उत्तर-हे गौतम ! सर्व से सर्वकत है। इस प्रकार यावत् वैमानिकों तक चौबीस ही दण्डक में कहना चाहिए। इसी प्रकार करते हैं और करेंगे, इन दोनों का कपब थी यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए । इसी
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