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भगवती सूत्र - श. १ उ. २ असंज्ञी जीवों का आयुष्य
असंज्ञी जीव की देव सम्बन्धी उत्कृष्ट आयु जो पल्योपम के असंख्यातवें भाग कही गई है वह भवनपति और वाणव्यन्तर देवों की अपेक्षा समझनी चाहिए और वह पत्योपम का असंख्यातवां भाग करोड़पूर्व से ज्यादा नहीं समझना चाहिए ।
भगवान् के उत्तर को सुनकर श्री गौतम स्वामी ने श्रद्धा और विनम्रता प्रकट करते हुए कहा - हे भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है । जैसा आप फरमाते हैं वैसा ही वस्तुतत्त्व है ।
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॥ प्रथम शतक का द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
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