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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ कांक्षामोहनीय
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णिमित्तं-योगों के निमित्त से, जोगप्पवहे-योगों से उत्पन्न होना, उट्ठाणे-उत्थान,कम्मेकर्म, बले-बल, वीरिए-वीर्य, पुरिसक्कार परिक्कमे--पुरुषकार पराक्रम । .
भावार्थ-१२६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं ? १२६ उत्तर--हाँ, गौतम ! बांधते हैं। १२७ प्रश्न--हे भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बांधते
१२७ उत्तर-हे गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं।
१२८ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ? १२८ उत्तर-हे गौतम ! प्रमाद योग से उत्पन्न होता है। १२९ प्रश्न-हे भगवन् ! योग किससे उत्पन्न होता है ? १२९ उत्तर-हे गौतम ! योग वीर्य से उत्पन्न होता है। १३० प्रश्न-हे भगवन् ! वीर्य किससे उत्पन्न होता है ? १३० उत्तर-हे गौतम ! वीर्य शरीर से उत्पन्न होता है। १३१ प्रश्न-हे भगवन् ! शरीर किससे उत्पन्न होता है ?
१३१ उत्तर-हे गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है और जीव उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम से यह करता है।
विवेचन--जीव प्रमाद रूप हेतु से और योग रूप निमित्त से, कांक्षामोहनीय कर्म बांधता है । मिथ्यात्व, अविरति और कषाय इन तीनों का प्रमाद में समावेश हो जाता है। शास्त्रकारों ने प्रमाद के आठ भेद बतलाये हैं । यथा- . पमाओ य मुणिदेहि, भणिओ अट्ठभेयओ । अण्णाणं संसओ चेव, मिच्छाणाणं तहेव य॥ रागदोसो मइन्भंसो, धम्मम्मि य अणायरो। जोगाणं दुप्पणिहाणं, अट्टहा वज्जियव्यो ।
. अर्थ-अज्ञान, संशय, मिथ्याज्ञान, रागद्वेष, मतिभ्रंश, धर्म में अनादर बुद्धि, अशुभ योग और दुर्ध्यान, ये प्रमाद के आठ भेद हैं । इन्हें त्याग देना चाहिए।
__ यद्यपि बन्ध के पांच कारण हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग । यहां प्रमाद का उल्लेख करके मिथ्यात्व, अविरति और कषाय को उसी के अर्न्तगत कर दिया है । और, योग का पृथक् उल्लेख है ही। इस प्रकार बन्ध के कारणों की संख्या में
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