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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ कांक्षा-मोहनीय की उदीरणा
विकल्प को ही जानना है इसके सिवाय और किसी पदार्थ को नहीं जानता । अवधिज्ञानी सामान्य देख कर विशेष देखता है अर्थात् अवधिज्ञान दर्शनपूर्वक होता है । अवधिज्ञान के साथ अवधिदर्शन होता है, किन्तु मनःपर्यय ज्ञान के साथ दर्शन नहीं है । कोई कोई अवधिज्ञान, मनोद्रव्यों को विषय नहीं करता और कोई कोई मनोद्रव्य के साथ अन्य रूपी पदार्थों को भी विषय करता है । अर्थात् कोई भी अवधिज्ञान ऐसा नहीं है जो मनः पर्यय ज्ञान की तरह केवल मनोद्रव्यों को ही जानता हो। यह दोनों ज्ञानों में विषय की अपेक्षा अन्तर है।
अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान में और भी बहुत अन्तर है। मनःपर्ययज्ञान सिर्फ मनुष्य क्षेत्र के संज्ञी जीवों के मनोद्रव्य को ही ग्रहण करता है, जब कि अवधिज्ञान समस्त लोकाकाश के रूपी पदार्थों को ग्रहण कर सकता है और शक्ति तो इससे भी कई गुणी अधिक है। इसके सिवाय अवधिज्ञान चारों गतियों के जीवों को हो सकता है, किन्तु मनःपर्यय ज्ञान केवल मनुष्य को ही होता है और वह भी अप्रमत्त संयत को ही । इस प्रकार विषय, क्षेत्र, स्वामी आदि अनेक अपेक्षाओं से दोनों ज्ञानों में अन्तर है। इस अन्तर को न समझ कर उनके विषय में शंका करने से और फिर शंका न मिटाने में कांक्षा, विचिकित्सा और कलुषता आदि आती है ।
२ वर्शनान्तर-ज्ञान की तरह दर्शन में भी शंका हो सकती है । सामान्य बोध को दर्शन कहते हैं । यह दो प्रकार से होता है-१ इन्द्रिय से और २ अनिन्द्रिय के निमित्त से । इन्द्रियों में श्रोत, चक्षु, घ्राण, रसना, और स्पर्शन हैं तथा अनिन्द्रिय में मन है । कोई दर्शन (सामान्य बोध) इन्द्रियों से होता है और कोई मन से ।
यहां यह शंका उत्पन्न होती है कि जब इन्द्रिय और मन से होने वाला सामान्य बोध 'दर्शन' कहलाता है, तो फिर एक चक्षुदर्शन और दूसरा अचक्षुदर्शन, इस प्रकार दो भेद करने की क्या आवश्यकता है ? यदि इन्द्रियजन्य और अनिन्द्रियजन्य भेद करने थे, तो श्रोत्रदर्शन, चक्षुदर्शन, घ्राणदर्शन, रसनादर्शन और स्पर्शनदर्शन तथा मनोदर्शन--इस प्रकार छह भेद करना चाहिए थे, अथवा संक्षेप में 'इन्द्रिय दर्शन' और 'मनोदर्शन'-ये दो भेद ही किये होते तो उचित था। किन्तु 'चक्षुदर्शन' और 'अचक्षु दर्शन' इस प्रकार दो भेद क्यों किये?
इस शंका का समाधान यह है कि प्रत्येक वस्तु में सामान्य धर्म भी होते हैं और विशेष धर्म भी होते हैं । अतएव भी सामान्य रूप से वस्तु का कथन किया जाता है और कमी विशेष रूप से। यहां चक्षुदर्शन कहकर विशेष रूप से कथन किया गया है और अपनदर्शन कह कर सामान्य रूप से निरूपण किया गया है. अर्थात् चक्षुदर्शन यह विशेष भेद
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