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१३.
भगवती सूत्र-श. १ उ. २ असुरकुमारादि. में समाहारादि
श्वासोच्छ्वास दो पक्ष के अन्तर से होता है। अनुत्तर विमान के देव का शरीर एक हार का है और उनका आहार तेतीस हजार वर्ष के अन्तर से तथा श्वासोच्छ्वास तेतीस पक्ष के अन्तर से होता है । इस अपेक्षा से प्रथम देवलोक के देवों का शरीर बड़ा है, इसलिए ₹ आहार और श्वासोच्छ्वास भी बारबार लेते हैं । इनकी अपेक्षा अनुत्तर विमान के देवों का शरीर छोटा हैं, इसलिए वे आहार और श्वासोच्छ्वास भी अल्प लेते हैं । यही बात असुरकुमारों के विषय में भी है।
अथवा-पर्याप्त अवस्था में महाशरीर वाले असुरकुमार लोमाहार की अपेक्षा बारबार आहार लेते हैं और अपर्याप्त अवस्था में अल्पशरीर वाले असुरकुमार लोमाहार नहीं करते, किन्तु ओजाहार ही करते हैं, इस अपेक्षा से भी महाशरीर वाले बारबार आहार करते हैं और अल्पशरीर वाले कदाचित् आहार करते हैं, ऐसा कहा गया है।
भगवान् ने असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या की असमानता बतलाते हुए यह । भी बतलाया है कि इनके कर्म आदि का कथन नारकियों से उल्टा है । इसका आशय यह . है कि-नैरयिकों में जो पूर्वोपपन्नक (पूर्वोत्पन्न) हैं. वे अल्प कर्म, विशुद्ध वर्ण और विशद्ध लेश्या वाले हैं और पश्चादुपपन्नक महाकर्म, अविशुद्ध वर्ण और अविशुद्ध लेश्या वाले हैं, किन्तु असुरकुमारों में इससे विपरीत है। पूर्वोपपन्नक असुरकुमार महाकर्म, अविशुद्ध वर्ण
और अविशुद्ध लेश्या वाले हैं और पश्चादुपपन्नक अल्प कर्म, विशुद्ध वर्ण और विशुद्ध लेश्या वाले हैं।
इस विपरीतता का कारण यह है कि पूर्वोपफ्नक असुरकुमारों का चित्त अतिकन्दर्प और दर्प युक्त होने से वे नरक के जीवों को बहुत त्रास देते हैं । त्रास सहन करने के नरक के जीवों के तो निर्जरा होती है, किन्तु असुरकुमारों के नये कर्मों का बन्ध होता है । वे अपनी क्रूर भावना के कारण एवं विकारादि के कारण अपनी अशुद्धता बढ़ाते हैं । उनका पुण्य क्षीण होता जाता है, पाप कर्म बढ़ता जाता है, इसलिए वे महाकर्मी होते हैं, उनका वर्ण और लेश्या अशुद्ध हो जाती है । इस अपेक्षा से पश्चादुपपन्नक असुरकुमार अल्पकर्मी, विशुदं वर्ण वाले और विशुद्ध लेश्या वाले होते हैं । . अपवा-बद्धायुष्क की अपेक्षा देखा जाय तो पूर्वोत्पन्न असुरकुमार यदि तिर्यन गति का आयुष्य बांध चुके हों, तो वे महाकर्म अशुद्ध वर्ण और अशुद्ध लेश्या वाले होते है। पश्चादुत्पन्न हुए असुरकुमारों ने बभी परलोक का आयुष्य नहीं बांधा हो, तो वे अपने साथ जो शुभ कर्म के गये हैं, वे ज्यादा क्षीण न होने से वे अल्प कर्म, विशुद्ध वर्ण और विशुद्ध लेश्या बाले होते हैं।
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