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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ बेइन्द्रियादि में आहारादि
९० पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा णेरइया,णाणत्तं किरियासु। ९१ प्रश्न-पंचिंदियतिरिक्खिजोणियाणं भंते ! सव्वे समकिरिया। ९१ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समढे। . ९२ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ ?
९२ उत्तर-गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पन्नता तं जहाः-सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी। तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी ते दुविहा पन्नता, तं जहाः-असंजया य, संजयासंजया य, तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसि णं तिण्णि किरियाओ कजंति, तं जहाः-आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया; असंजयाणं चत्तारि, मिच्छादिट्ठीणं पंच, सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच ।
विशेष शब्दों के अर्थ–णाणतं--भिन्नता, असंजया--असंयत, संजयासंजयासंयतासंयत, तंजहा-वे इस प्रकार हैं।
. भावार्थ-८९- जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों का वर्णन किया गया है उसी प्रकार अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौरिन्द्रिय जीवों का समझना चाहिए। . ९०--पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि वाले जीवों का कथन नारकियों के समान है, केवल क्रियाओं में भिन्नता है। • ९१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि वाले जीव समान क्रिया वाले हैं ?
९१ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ९२ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ? ९२ उत्तर-हे गौतम ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि वाले जीव तीन प्रकार
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