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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ लेश्या
उत्कृष्ट वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होते हैं और वे अल्पवेदना वाले होते हैं । यह बात असुरकुमारों में कही हुई युक्ति के अनुसार समझनी चाहिए । संज्ञीभूत अर्थात् सम्यग्दृष्टि'' और असंज्ञीभूत अर्थात् 'मिथ्यादृष्टि' यह जो पहले अर्थ किया था वह यहाँ भी घटित कर लेना चाहिए।
- ज्योतिषी और वैमानिक देवों में तो असंज्ञी जीव उत्पन्न ही नहीं होते हैं । इसलिए इनकी वेदना के सम्बन्ध में कहा गया है कि ज्योतिषी देवों के दो भेद हैं—मायी-मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और अमायी-सम्यग्दृष्टि उपपन्नक । शुभ वेदना की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि को अल्प वेदना होती है और सम्यग्दृष्टि को महा वेदना होती है।
लेश्या
९७ प्रश्न-सलेस्सा णं भंते ! नेरइया सव्वे समाहारगा ?
९७ उत्तर-ओहियाणं, सलेस्साणं, सुकलेस्साणं; एएसि णं तिण्हं एको गमो। कण्हलेस्साणं, नीललेस्साणं पि एको गमो । नवरं वेदणाएं-मायिमिच्छदिट्ठीउववनगा य, अमायिसम्मदिट्ठीउववन्नगा य भाणियव्वा । मणुस्सा किरियासु सरागचीअराग-पमत्ता-ऽपमत्ता न भाणियव्वा, काउलेस्साण वि एसेव गमो । नवरं-नेरइए जहा ओहिओ दंडए तहा भाणियव्वा, तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा जस्स अस्थि जहा ओहिओ दंडओ तहा भाणियव्वा । नवरं-मणुस्सा सरागा, वीयरागा न भाणियव्वा । गाहाः
दुक्खा-उए उदिण्णे आहारे कम्म-वन-लेरसा य, समवेयण-समकिरिया समाउए चेव बोधव्वा।
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