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भगवती सूत्र - श. १ उ. २ लेश्या
हैं - अल्पशरीरी नैरयिक भी सलेश्य हैं और महाशरीरी नैरयिक भी लेश्या युक्त है । अतएव नैरयिकों के आहारादि की वक्तव्यता पहले के समान ही समझनी चाहिए ।
आहार के विषय में जिस प्रकार प्रश्न किया गया है उसी प्रकार शरीर, श्वासोच्छ्वाम, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और उपपात के लिए भी प्रश्न करना चाहिए । इसी प्रकार चौबीस ही दण्डकों को लेकर प्रश्न करना चाहिए ।
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सामान्य रूप से सलेश्य का प्रश्न करने के पश्चात् कृष्णलेश्या सम्बन्धी प्रश्न आता है । वह इस प्रकार है- क्या कृष्णलेश्या वाले सत्र नारकी समान आहारी है ? इसके उत्तर में भगवान् फरमाते हैं कि नहीं। क्योंकि कृष्णलेश्या यद्यपि सामान्य रूप से एक है तथापि उसके अवान्तर भेद अनेक हैं । कोई कृष्णलेण्या अपेक्षाकृत विशुद्ध होती है, कोई अविशुद्ध होती है। एक कृष्णलेश्या से नरक गति मिलती है और एक कृष्णलेश्या से भवनपति देवों में उत्पत्ति होती है । अतएव कृष्णलेश्या में तरतमता के भेद से अनेक भेद हैं । कृष्णलेश्या वाले नारकियों के दो भेद हैं-अल्पशरीरी और महाशरीरी । अतएव उन सबका आहार समान नहीं है । कृष्णलेश्या और नीललेश्या में मनुष्यों के सरागसंयत, वीतराग संयत, प्रमत्त - संयत और अप्रमत्त संयत, ऐसे भेद नहीं करने चाहिए, क्योंकि कृष्णलेव्या और नीललक्ष्या वाले वीतराग संयत नहीं होते हैं, किन्तु सराग संयत ही होते हैं, अप्रमत्त संयत नहीं होते हैं । किन्तु प्रमत्त संयत ही होते है * ।
कृष्णलेश्या की तरह सभी लेश्याओं का वर्णन आहार, शरीर आदि नौ पदों को लेकर करना चाहिए। इस प्रकार सात दण्डकों का प्रश्न समझना चाहिए ।
९८ प्रश्न - क णं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ ?
९८ उत्तर - गोयमा ! छ लेस्साओ पण्णत्ता, तंजहा : -लेस्साणं
बिईओ उद्देसो भाणियव्वो, जाव इड्ढी ।
विशेष शब्दों के अर्थ - बिईओ - दूसरा, उद्देसो- उद्देशक, जाव-यावत् = तक, पर्यन्त, हड्डी-ऋद्धि ।
भावार्थ - ९८ प्रश्न - हे भगवन् ! कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ?
● पाद टिप्पण पु० ९१ में देखें।
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