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भगवती सूत्र - श. १ उ. २ संसार संस्थानकाल
१०३ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक संसार संस्थान काल के जो तीन भेद हैं - शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल । इनमें कौन किससे कम, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ?
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१०३ उत्तर - हे गौतम! सब से कम अशून्यकाल है, उससे मिश्रकाल अनन्तगुणा है, उससे शून्यकाल अनन्तगुणा है ।
१०४ - तिर्यञ्च संसार संस्थान काल के दो भेद हैं, उनमें सब से कम अशून्यकाल है, उससे मिश्रकाल अनन्तगुणा है ।
१०५ - मनुष्य और देवों के संसार संस्थान काल का अल्पबहुत्व (न्यूनाधिकता ) नैरयिकों के संसार संस्थान काल के अल्प बहुत्व के समान ही समझना चाहिए ।
१०६ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, इन चारों संसार संस्थान कालों में कौन किससे कम, ज्यादा, तुल्य या विशेषाधिक है ? १०६ उत्तर - हे गौतम ! मनुष्य संसार संस्थान काल सब से थोड़ा है, उससे नैरयिक संसार संस्थान काल असंख्यात गुणा है, उससे देव संसार संस्थान काल असंख्यात गुणा है, और उससे तिर्यञ्च संसार संस्थान काल अनन्त गुणा है ।
विवेचन - ' पशव: पशुत्वमश्नुवते' अर्थात् पशु मर कर पशु ही होता है और मनुष्य मर कर मनुष्य ही होता है, इस प्रकार की मान्यता का निराकरण करने के लिए गौतम स्वामी ने यह प्रश्न किया कि हे भगवन् ! जीव अनादिकाल से एक योनि से दूसरी योनि में भ्रमण कर रहा है, तो अतीत काल में जीव ने कितने प्रकार का संसार बिताया है ? भगवान् ने फरमाया कि - हे गौतम! सब जीव अतीत काल में चार प्रकार के संसार में रहे हैं- कभी नारकी, कभी तिर्यञ्च, कभी मनुष्य और एक भव से दूसरे भव में भ्रमण करना' इसी को संसार संस्थान गौतम स्वामी पूछते हैं - हे भगवन् ! नरक में जीव रहा तो वहाँ उसने कितने प्रकार का काल बिताया है ? भगवान् ने फरमाया- वहाँ उसने तीन प्रकार का काल बिताया है । यथा - शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल जैसा कि कहा है
कभी देव । ' इस प्रकार काल कहते हैं ।
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सुण्णासुण्णो मोसो तिविहो संसारचिट्ठणाकालो । तिरियाणं सुण्णवज्जो, सेसाणं होइ तिविहो वि ॥
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