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भगवती सूत्र - श. १ उ. २ उपपात
भावार्थ - १०७ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? १०७ उत्तर - हे गौतम ! कोई जीव करता है और कोई जीव नहीं करता । यहाँ प्रज्ञापना सूत्र का अन्तक्रिया पद समझ लेना चाहिए ।
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विवेचन - जिस क्रिया के पश्चात् फिर कभी दूसरी क्रिया न करनी पड़े, वह 'अन्तक्रिया, कहलाती है अथवा कर्मों का सर्वथा अन्त करने वाली क्रिया अन्तक्रिया कहलाती है । इन दोनों व्याख्याओं का आशय एक ही है कि समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त
करना ।
प्रश्न यह है कि क्या जीव संसार में ही रहता है या संसार का अन्त कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है ?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए पनवणा सूत्र के बीसवें पद का उल्लेख किया गया है। वहाँ अन्तक्रिया पद में इसका विस्तार पूर्वक वर्णन है । वह इस प्रकार है— प्रश्न- हे भगवन् ! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ?
उत्तर-हे गौतम ! कोई जीव करता है और कोई जीव नहीं करता है । प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? उत्तर - हे गौतम! भव्य जीव अन्तक्रिया करते हैं और अभव्य जीव अन्तक्रिया नहीं करते है ।
इस तरह नैरयिक से लेकर वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डक में कहना चाहिए । किन्तु यह ध्यान में रखना चाहिए कि मनुष्य के सिवाय अन्य किसी भी दण्डक के जीव उसी भव में अन्तक्रिया नहीं कर सकते । वे नरकादि दण्डकों से निकलकर मनुष्य भव में आकर फिर अन्तक्रिया कर सकते हैं ।
उपपात
१०८ प्रश्न - अह भंते ! असंजयभवियदव्वदेवाणं, अविराहियसंजमाणं, विराहियसंजमाणं, अविराहियसंजमासंजमाणं, विराहियसंजमासंजमाणं, असण्णीणं, तावसाणं, कंदप्पियाणं चरगपरि
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