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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ लेश्या
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विशेष शब्दों के अर्थ-ओहियाणं-औधिक = सामान्य, तिण्हं-तीन का, एक्को गमो-एक गम अर्थात् समान पाठ ।।
भावार्थ-९७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या लेश्या वाले सब नैरयिक समान आहार वाले हैं ?
९७ उत्तर-हे गौतम! औधिक-सामान्य, सलेश्य और शुक्ल लेश्या वाले, इन तीनों का एक गम-पाठ कहना चाहिए । कृष्ण लेश्या वालों का और नील लेश्या वालों का एक समान पाठ कहना चाहिए, परन्तु उनको वेदना में इस प्रकार भेद है-मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और अमायी-समदृष्टि उपपन्नक कहने चाहिए तथा कृष्ण लेश्या. और नील लेश्या में मनुष्यों के सराग-संयत, वीतरागसंयत, प्रमत्त-संयत और अप्रमत्तसंयत ऐसे भेद नहीं करना चाहिये। क्योंकि कृष्ण
और नील लेश्या वाले वीतराग संयत नहीं होते हैं, किन्तु सराग संयत ही होते हैं, अप्रमत्त संयत नहीं होते हैं, किन्तु प्रमत्त संयत ही होते हैं । कापोत लेश्या में भी यही पाठ कहना चाहिए, किंतु भेद यह है कि कापोत लेश्या वाले नरयिकों को औधिक दण्डक के समान कहना चाहिए। तेजोलेश्या और पद्मलेश्या वालों को औधिक वण्डक के ही समान कहना चाहिए, विशेषता यह है कि मनुष्यों को सराग और वीतराग नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वे सराग ही होते हैं।
. गाथा का अर्थ इस प्रकार है__कर्म और आयुष्य उदीर्ण हो तो वेदते हैं । आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और आयुष्य, इन सब को समानता के सम्बन्ध में पहले कहे अनुसार ही समझना चाहिए।
विवेचन-अब लेश्या की अपेक्षा चौबीस दण्डकों का विचार किया जाता है। छह लेश्याओं के छह दण्डक (आलापक) और सलेश्य का एक दण्डक, इस प्रकार. सांत दण्डकों से यहाँ विचार किया गया है ।
पहले नैरयिकों. का जो वर्णन किया गया है उसमें सामान्य नैरयिकों का प्रश्न था। किन्तु यहाँ पर यह प्रश्न है कि-हे भगवन् ! क्या लेश्या वाले सब नरयिक समान आहारी हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! सलेश्य नारकों के दो भेद.
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