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भगवती सूत्र-श. उ. २ असुरकुमारादि में आहारादि ।
विशेष शब्दों के अर्थ-माणियव्वा-कहना चाहिए, गवरं-इतनी विशेषता है, . इतना अन्तर है, पसत्था-प्रशस्त-अच्छा । ___भावार्थ-८३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब असुरकुमार समान आहार चाले और समान शरीर वाले हैं ?--
८३ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमारों का वर्णन नारकी जीवों के समान कहना चाहिए । विशेषता यह है कि-असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या नारको जीवों से विपरीत कहना चाहिए अर्थात् पूर्वोपपन्नक (पूर्वोत्पन्न) असुरकुमार महाकर्म वाले, अविशुद्ध वर्ण वाले और अविशुद्ध लेश्या वाले हैं और पश्चादुपपन्नक (बाद में उत्पन्न होने वाले) प्रशस्त हैं। शेष पहले के समान समझना चाहिए। इसी तरह स्तनितकुमारों तक समझना चाहिए।
विवेचन-सात नरकों का एक दण्डक है और वह पहला दण्डक है । उसके विषय में प्रश्नोत्तर हो चुके । असुरकुमारों का दूसरा दण्डक है । अब उनके विषय में प्रश्नोत्तर आरम्भ होते हैं।
गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! क्या सब असुरकुमार देवों का आहार और शरीर एक समान हैं ? भगवान् ने फरमाया कि ऐसा नहीं है । असुरकुमारों के विषय में भी सभी बाते नैरयिकों के समान ही हैं। इतना फर्क है कि असुरकुमारों का कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के कर्म, वर्ण और लेश्या से विपरीत समझना चाहिए।
नारकी जीवों के समान असुरकुमार भी अल्प शरीर वाले और महा शरीर वाले हैं। महाशरीर वाले असुरकुमार बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं और बार बार आहार करते हैं तथा बार बार श्वासोच्छ्वास लेते हैं । अल्प शरीर वाले असुरकुमार थोड़े पुद्गलों का आहार करते हैं, बारबार आहार नहीं करते और बारबार श्वासोच्छ्वास नहीं लेते। ___असुरकुमारों काभवधारणीय (स्वाभाविक) शरीरं जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग का और उत्कृष्ट सात हाथ का होता है । उत्तर वैक्रिय की अपेक्षा जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन होता है। ___ यहाँ असुरकुमारों के मनोभक्षी (मानसिक-आहार ग्रहण करने का मन होते ही इष्ट कान्त आदि आहार के पुद्गल मनोभक्षी आहार के रूप में परिणत होजाते हैं) आहार को मुख्य करके उसकी अपेक्षा से कथन किया गया है-अल्प शरीर वालों का अल्प (कम) आहार और महाशरीर वालों का अधिक आहार अपेक्षा कृत समझना चाहिए । जैसे किसी
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