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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ पृथ्वीकायिक में आहारादि
८८ उत्तर-गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माई मिच्छादिट्ठी ताणं णियइयाओ पंच किरियाओ कज्जति, तं जहाः-आरंभिया जाव-मिच्छादसणवत्तिया । से तेणटेणं......समाउया, समोवनगा जहा नेरइया तहा भाणियव्वा ।
विशेष शब्दों के अर्थ-अणिदाए-अनिर्धारित रूप से । माई-मायी-माया का सेवन करने वाले।
भावार्थ-८४ पृथ्वीकाय के जीवों का आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के समान समझना चाहिए।
८५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले
८५ उत्तर-हाँ, गौतम ! समान वेदना वाले हैं। ८६ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ?
८६ उत्सर-हे गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव असशी हैं और असंजीभूत वेदना को अनिर्धारित रूप से वेदते हैं। इस कारण हे गौतम ! वे सब समान वेदना वाले हैं। । ८७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले.
.. ८७ उत्तर-हाँ, गौतम ! सब समान क्रिया वाले हैं।
८८ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ?
८८ उत्तर-हे गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव मायी और मिथ्यावृष्टि हैं। इसलिए उन्हें नियम से पांचों क्रियाएं लगती हैं। वे पांच क्रियाएँ ये हैंआरम्भिको यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि-सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं।
जैसे नारकी जीवों में समायुष्क समोपपन्नक आदि चार भंग कहे हैं ।
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