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________________ १३२ भगवती सूत्र-श. १ उ. २ पृथ्वीकायिक में आहारादि ८८ उत्तर-गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माई मिच्छादिट्ठी ताणं णियइयाओ पंच किरियाओ कज्जति, तं जहाः-आरंभिया जाव-मिच्छादसणवत्तिया । से तेणटेणं......समाउया, समोवनगा जहा नेरइया तहा भाणियव्वा । विशेष शब्दों के अर्थ-अणिदाए-अनिर्धारित रूप से । माई-मायी-माया का सेवन करने वाले। भावार्थ-८४ पृथ्वीकाय के जीवों का आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के समान समझना चाहिए। ८५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले ८५ उत्तर-हाँ, गौतम ! समान वेदना वाले हैं। ८६ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ? ८६ उत्सर-हे गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव असशी हैं और असंजीभूत वेदना को अनिर्धारित रूप से वेदते हैं। इस कारण हे गौतम ! वे सब समान वेदना वाले हैं। । ८७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले. .. ८७ उत्तर-हाँ, गौतम ! सब समान क्रिया वाले हैं। ८८ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ? ८८ उत्तर-हे गौतम ! सब पृथ्वीकायिक जीव मायी और मिथ्यावृष्टि हैं। इसलिए उन्हें नियम से पांचों क्रियाएं लगती हैं। वे पांच क्रियाएँ ये हैंआरम्भिको यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि-सब पृथ्वीकायिक जीव समान क्रिया वाले हैं। जैसे नारकी जीवों में समायुष्क समोपपन्नक आदि चार भंग कहे हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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