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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ स्वकृत कर्म वेदना
एगत्तेणं जाव-चेमाणिया, पुहत्तेण वि तहेव ।
विशेष शब्दार्थ-समोसरणं-समवसरण, परिसा-परिषद्, वयासी-बोले, सयंकडंअपना किया हुआ, अस्थगइयं-कुछ दुःख को, उदिण्णं-उदय में आया हुआ, अणुदिनंउदय में नहीं आया हुआ, आउयं-आयुष्य, एगत्त-एक वचन, पुहुत्त-पृथक्त्व-बहुवचन ।
भावार्थ-६३ राजगृह नगर में समवसरण हुआ । परिषद् निकली। यावत् भगवान् ने इस प्रकार फरमाया- .
६४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख भोगता है ? ६४ उत्तर-हे गौतम ! कुछ भोगता है और कुछ नहीं भोगता।
६५ प्रश्न-आप किस कारण से ऐसा फरमाते हैं कि-कुछ भोगता है और कुछ नहीं भोगता ? .
. ६५ उत्तर-हे गौतम ! जीव उदीर्ण अर्थात् उदय में आये हुए दुःख (कर्म) को भोगता है और अनुदीर्ण-उदय में नहीं आये हुए दुःख (कर्म) को नहीं भोगता है। इसलिए कहा गया है कि-कुछ भोगता है और कुछ नहीं भोगता है। इस प्रकार वैमानिक तक चौबीस (सभी) दण्डकों में समझ लेना चाहिए।
_६६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख को भोगते हैं ? ... ६६ उत्तर-हे गौतम ! कुछ कर्म को भोगते हैं और कुछ कर्म को नहीं भोगते।
६७ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
६७ उत्तर-हे गौतम ! उदीर्ण कर्म को भोगते हैं, अनुदीर्ण को नहीं भोगते । इस कारण ऐसा कहा गया है कि कुछ को भोगते हैं और कुछ को नहीं भोगते । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक चौबीस (सभी) दण्डकों में समझ लेना चाहिए।
६८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत आयु को भोगता है ?
६८ उत्तर-हे गौतम ! जीव कुछ आयु को भोगता है और कुछ को नहीं भोगता । जैसे दुःख-कर्म के विषय में दो दण्डक-आलापक कहे हैं उसी
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