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भगवती सूत्र - श. १ उ. २ नैरयिक सम्बन्धी विचार
मनुष्य यहां मौजूद है, उसने आगामी भव के लिए स्वर्ग की आयु बांध ली । अब दह पहले बंधी हुई मनुष्यायु जो कि उदय में आई हुई है उसे भोग रहा है और अभी बंधी हुई. देवायु को नहीं भोग रहा है, किन्तु उसे आगे भोगेगा, क्योंकि उसका अभी उदय नहीं आया है । चौबीस ही दण्डकों के लिए आयु के विषय में यही बात समझनी चाहिए। __ यहाँ टीकाकार ने कृष्णवासुदेव का उदाहरण देकर यह बतलाया है कि पहले उन्होंने सातवीं पृथ्वी का आयुष्य बांधा था, फिर कालान्तर में परिणाम विशेष से तीसरी पृथ्वी का आयुष्य बांधा । किन्तु यह बात आगम से मेल नहीं खाती हैं, क्योंकि एक जीव एक भव में एक ही बार आयुष्य का बन्ध करता है, दो बार नहीं। .
एक भव में दो बार आयुष्य का बन्ध कहना टीकाकार का स्वयं स्ववचन बाधित है, क्योंकि प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक में इन्हीं टीकाकार ने लिखा है-'यस्मादेकत्रभवग्रहणे सकृदेवाऽन्तमुहूर्तमात्रकाले एवायुषोबन्धः । अर्थात् एक भव में एक जीव एक ही बार आयुष्य का बन्ध करता है।
___ नरयिक सम्बन्धी विचार ,
६९ प्रश्न-नेरइया णं भंते ! सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा, सव्वे समुस्सासनीसासा ?
६९ उत्तर-गोयमा ! नो इणटे समढे । .. ७० प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'नेरइया नो सव्वे समाहारा, नो सव्वे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सासनीसासा !
७० उत्तर-गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहाः-महासरीरा य, अप्पसरीरा य । तत्थ णं जे ते महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति; अभिक्खणं आहा
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