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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ नैरयिक के समवेदना आदि
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८२ उत्तर-गोयमा ! नेरइया चविहा पन्नत्ता, तं जहाःअत्थेगइया समाउया समोववनगा, अत्थेगइया समाउया विसमो. ववन्नगा, अत्यंगड्या विसमाउया समोववन्नगा, अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा; से तेणटेणं गोयमा !
विशेष शब्दों के अर्थ-समवेयणा-समान वेदना वाले, सण्णिभूया-संजीभूत, असण्णिभूया असंजीभूत, समकिरिया-समान क्रिया वाले, समाउया-समान आयु वाले, समोववण्णगा-समोपपन्नक = एक साथ उत्पन्न हुए, विसमोववण्णगा-विषमोपपन्नक = एक साथ नहीं किन्तु पहले पीछे उत्पन्न हुए।
भावार्थ--७७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब नारकी समान वेदना वाले हैं ? ७७ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ७८ प्रश्न-भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
७८ उत्तर-हे गौतम ! नारको जीव दो प्रकार के कहे गये हैं । यथासंजीभूत और असंज्ञीभूत । इनमें जो संज्ञीभूत हैं वे महावेदना वाले हैं और जो असंज्ञीभत हैं वे अल्पवेदना वाले हैं। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सब नारकी समान वेदना वाले नहीं हैं।
७९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब नारकी समान क्रिया वाले हैं ? ७९ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ८० प्रश्न--हे भगवन् ! किस कारण से ?.
८० उत्तर-हे गौतम ! नारको जीव तीन प्रकार के कहे गये है। यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि-मिश्रदृष्टि । इनमें जो सम्यगदृष्टि हैं उनके चार क्रिया कही गई हैं-आरम्भिको, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यान क्रिया। मिथ्यादृष्टि के पाँच क्रिया होती है-आरम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया। इसी तरह सम्यमिथ्यादृष्टि के भी पांच क्रियाएँ होती हैं । इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि-सब नारको समान क्रिया वाले नहीं हैं।
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