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भगवती सूत्र-श. १ उ. २ नैरयिकों के समकर्म आदि प्रश्नोत्तर.
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__७२ उत्तर-हे गौतम ! नारको जीव दो प्रकार के कहे गये हैं-यथापूर्वोपपन्नक-पहले उत्पन्न हुए और पश्चादुपपन्नक-पीछे उत्पन्न हुए। इनमें जो नरयिक पूर्वोपपन्नक हैं वे अल्प कर्म वाले हैं और जो पश्चादुपपन्नक हैं वे महा कर्म वाले हैं। इसलिए हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि-सब नारको समान कर्म वाले नहीं हैं।
७३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब नारकी समान वर्ण वाले हैं ? . ७३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ७४ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ?
७४ उत्तर-हे गौतम ! नारकी जीव दो प्रकार के हैं। यथा-पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं वे विशुद्ध वर्ण वाले हैं और जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्ध वर्ण वाले हैं। इसलिए हे गौतम! ऐसा कहा गया है कि सब नारकी समान वर्ण वाले नहीं हैं।
७५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या, सब नारको समान लेश्या वाले हैं ? ७५ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ७६ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ?
७६ उत्तर-हे गौतम ! नारको जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथापूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक । इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं वे विशुद्ध लेश्या वाले हैं और जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्ध लेश्या वाले हैं। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि-सब नारकी समान लेश्या वाले नहीं हैं।
विवेचन-श्री गौतम स्वामी ने नारकियों के कर्म, वर्ण और लेश्या के सम्बन्ध में प्रश्न किया है । जिसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया है कि-हे गौतम ! सब नारकियों के कर्म, वर्ण, लेश्या समान नहीं हैं । गौतमस्वामी ने इस असमानता का कारण पूछा, तब भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! नारकी जीव दो प्रकार के हैं-पूर्वोपपन्नक (पूर्वोत्पन्न) अर्थात् पहले उत्पन्न हुए और पश्चादुपपन्नक (पश्चादुतान्न) अर्थात् पीछे उत्पन्न हुए। जो जीव नरक में पहले उत्पन्न हो चुके हैं उन्होंने नरक का आयुष्य और अन्य सात कर्म बहुत से भोग लिये हैं, अतएव उनके बहुत से कर्मों की निर्जरा हो चुकी है । इस कारण वे अल्प
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