________________
भगवती मूत्र--श. १ उ. २ नैरयिकों के समकर्म आदि प्रश्नोत्तर
११९
७३ प्रश्न-नेरइया णं भंते ! सव्वे समवन्ना ? ७३ उत्तर-गोयमा ! नो इणटे समझे। ७४ प्रश्न-से केणटेणं तह चेव....?
७४ उत्तर-गोयमा ! जे ते पुव्योववन्नगा ते णं विसुद्धवन्नतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं अविसुद्धवन्नतरागा, तहेव से तेणटेणं एवं....।
७५ प्रश्न-नेरइया णं भंते ! सव्वे समलेस्सा ? ७५ उत्तर-गोयमा ! नो इणटे समटे । ७६ प्रश्न-से केणटेणं जाव-'नो सव्वे समलेस्सा' ?
७६ उत्तर-गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहाः-पुखोववण्णगा य, पच्छोववण्णगा य; तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं अविसुद्धलेस्सतरागा, से तेणटेणं........।
_ विशेष शब्दों के अर्थ-समकम्मा-समान कर्म वाले, पुल्वोववण्णगा-पूर्वोपपन्नक अर्थात् पहले उत्पन्न हुए, पच्छोववण्णगा-पश्चादुपपन्नक अर्थात् पीछे उत्पन्न हुए, अप्पकम्मतरागा-अल्प कर्म वाले, महाकम्मतरागा-महा कर्म वाले, समवण्णा-समान वर्ण वाले, समलेस्सा-समान लेश्या वाले, विसुद्धवण्णतरागा-विशुद्ध वर्ण वाले, विसुद्धलेस्सतरागा-विशुद्ध लेश्या वाले ।
मावार्थ-७१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सब नारकी समान कर्म वाले हैं ? ७१ उत्तर-गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। ७२ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org