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भगवती सूत्र - श. १ उ. १ नैरयिक सम्बन्धी विचार
बड़े शरीर वाला नैरयिक बहुत पुद्गलों का आहार करता है और छोटे शरीर वाला कम पुद्गलों का । यहाँ मनुष्यलोक में भी यही बात देखी जाती है कि बड़े शरीर वाला अधिक खाता है और छोटे शरीर वाला कम । इसके लिए हाथी और खरगोश का उदाहरण दिया जा सकता है।
आहार का यह परिमाण भी सापेक्ष ही समझना चाहिए अर्थात् बड़े शरीर वाले के आहार की अपेक्षा छोटे शरीर वाले का आहार कम है और छोटे शरीर वाले के आहार की अपेक्षा बड़े शरीर वाले नारकी का आहार अधिक है ।
यहाँ यह शंका हो सकती है कि इस लोक के प्राणियों का जो उदाहरण दिया गया है, सो इससे कोई निश्चित नियम सिद्ध नहीं होता, क्योंकि कभी कभी यह देखा जाता है। कि कोई छोटे शरीर वाला बहुत आहार करता है और कोई बड़े शरीर वाला थोड़ा आहार करता है । फिर यह कैसे घटित होगा ?
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इसका समाधान यह है - यह उदाहरण प्रायिक है। अधिकांश मनुष्यों की अपेक्षा यह दृष्टान्त दिया गया है । अतः बहुतों की अपेक्षा यह कथन होने से कोई दोष नहीं है । बड़े शरीर वाले नारकियों को क्षुधा की वेदना भी अधिक होती है और ताड़ना तर्जना तथा क्षेत्रादि से उत्पन्न होने वाली पीड़ा भी अधिक होती है ।
बड़े शरीर वालों का आहार भी बहुत होता है और परिणमन भी बहुत होता है । यह परिणमन आहार की अपेक्षा से है। इसी प्रकार बड़े शरीर वाले नैरयिक श्वास लेने में बहुत पुद्गल ग्रहण करते हैं और निःश्वास में बहुत पुद्गलों को छोड़ते भी हैं। बड़े शरीर वाले को वेदना ज्यादा होती है, इसलिए उन्हें श्वासोच्छ्वास भी ज्यादा लेना पड़ता है, क्योंकि दुःखी प्राणी शीघ्र शीघ्र और ज्यादा श्वास लेता है। छोटे शरीर वाले नैरयिक को दुःख कम होता है, अतः उनका श्वासोच्छ्वास भी कम होता है । वे कदाचित् आहार लेते हैं और कदाचित् नहीं लेते । वे कदाचित् श्वासोच्छ्वास लेते हैं और कदाचित् नहीं लेते हैं ।
यहाँ यह शंका हो सकती है कि पहले उद्देशक में नारकी जीवों के वर्णन में यह कहा गया था कि - नारकी जीव निरन्तर आहार लेते हैं और निरन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं । फिर यहाँ कदाचित् आहार लेने और कदाचित् श्वासोच्छ्वास लेने का कथन कैसे किया गया है ?
इसका समाधान यह है कि पहले उद्देशक में निरन्तर आहार लेने और निरन्तर श्वासोच्छ्वास लेने की जो बात कही है, वह बड़े शरीर वाले नारकियों की अपेक्षा कही गई है और यहाँ जो कदाचित् आहार लेने और कदाचित् श्वासोच्छ्वास लेने की बात कही है।
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