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भगवती सूत्र-श. १. उ. २ स्वकृतं कर्म वेदना
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'कडाण कम्माण ण मोक्ख अत्थि' अर्थात्-किये हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं होता है । इस नियमानुसार किये हुए सब कर्मों को भोगना ही पड़ता है, किन्तु बांधे हुए सभी कर्म एक साथ उदय में नहीं आ जाते हैं । इसलिए अवश्य वेद्य कर्मों में से भी कुछ को वेदता है और कुछ को नहीं वेदता है अर्थात् उदय में नहीं आये हुए कर्म को नहीं वेदता है। यह एक वचन सम्बन्धी कथन नरक से लेकर वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डक में समझ लेना चाहिए।
एक वचन सम्बन्धी प्रश्न का जो उत्तर दिया गया वैसा ही बहुवचन सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर है । अर्थात् बहुत जीव (सभी जीव)अपने ही किये हुए कर्म का फल भोगते हैं और उदय प्राप्त कर्म का फल भोगते हैं, अनुदय प्राप्त का फल नहीं भोगते हैं । यह बात चौबीस ही दण्डकों के लिए समान रूप से लागू होती है।
शंका-यहाँ पर यह शंका की जा सकती है कि-जो अर्थ एक वचन वाले प्रश्न में है वही अर्थ बहुवचन वाले प्रश्न में है, फिर यह बहुवचन वाला दूसरा प्रश्न क्यों किया गया?
- इसका समाधान यह है कि-किसी पदार्थ के विषय में एक वचन सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में और बहुवचन सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में अर्थ विशेष देखने में आता है। जैसे किएक जीव आश्री सम्यक्त्वादि (सम्यक्त्व, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, और अवधिज्ञान)की स्थिति छासठ सागरोपम से कुछ अधिक की है और बहुत जोवों आश्री सम्यक्त्वादि की स्थिति 'सव्वद्धा-सदा काल है। इसी प्रकार सम्यक्त्वादि की तरह यहाँ पर भी एक वचन और बहुवचन सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर में शायद कोई अर्थ विशेष सम्भवित हो, इस अभिप्राय से गौतम स्वामी ने बहुवचन सम्बन्धी प्रश्न किया है। अतः बहुवचन सम्बन्धी प्रश्न करने में किसी प्रकार का दोष नहीं है । अथवा अत्यन्त अव्युत्पन्न बुद्धि वाले शिष्यों को बोध कराने के लिए बहुवचन सम्बन्धी प्रश्न किया है।
यद्यपि आयुकर्म भी आठ कर्मों के अन्तर्गत है, तथापि यहाँ आयु के सम्बन्ध में अलग प्रश्न करने का आशय यह है कि नरक तिर्यञ्च आदि के व्यवहार में आयुष्य की मुख्यता है । इसलिए आयुष्य के सम्बन्ध में एक वचन और बहुवचन युक्त प्रश्न किये गये हैं । इसका उत्तर भी भगवान् ने यही फरमाया है कि-जीव अपने उपार्जन किये हुए आयुष्य को वेदता है, किन्तु दूसरों के उपार्जन किये हुए आयुष्य को नहीं वेदता । अपनी उपार्जन की हुई आयु में से ज्यों ज्यों आयु उदय में आती जाती है, त्यों त्यों वह आयु भोगी जाती है । और उदय में नहीं आई हुई आयु नहीं भोगी जाती है। उदाहरणार्थ-जैसे कोई
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