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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ बेइन्द्रिय जीवों का वर्णन
होती है। बाकी उसी प्रकार जानना चाहिए यावत् अनन्तवाँ भाग आस्वादन करते हैं।
३६ प्रश्न-हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहार रूप से ग्रहण करते हैं, क्या वे उन सब पुद्गलों को खा जाते हैं अथवा उन सब को नहीं खाते हैं ?
. ३६ उत्तर-हे गौतम ! बेइन्द्रिा जीवों का आहार दो प्रकार का कहा गया है-रोमाहार और प्रक्षेपाहार। जिन पुद्गलों को रोमाहार द्वारा ग्रहण करते हैं, उन सब को सम्पूर्णपने खा जाते हैं। जिन पुद्गलों को प्रक्षेपाहार रूप से ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों में से असंख्यातवां भाग खाया जाता है और अनेक हजारों भाग आस्वादन किये बिना और स्पर्श किये बिना विध्वंस को प्राप्त हो जाते हैं।
३७ प्रश्न-हे भगवन् ! इन बिना आस्वादन किये हुए और बिना स्पर्श किये हए पुद्गलों में से कौन से पुद्गल किन पुद्गलों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ?
३७ उत्तर-हे गौतम ! आस्वादन में नहीं आये हुए पुद्गल सब से थोडे हैं, स्पर्श में नहीं आये हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुणा हैं।
३८ प्रश्न-हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहार रूप से ग्रहण करते हैं वे पुद्गल उनके किस रूप में बारम्बार परिणत होते हैं ?
३८ उत्तर-हे गौतम ! वे पुद्गल उनको विविधतापूर्वक जिव्हेन्द्रियपने और स्पर्शनेन्द्रियपने बारबार परिणत होते है।
३९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या बेइन्द्रिय जीवों को पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए हैं ?
३९ उत्तर-हे गौतम ! यह सब पहले की तरह समझना चाहिए। यावत् अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते हैं, वहां तक कह देना चाहिए।
. विवेचन-द्वीन्द्रिय (दो इन्द्रिय वाले) जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त की और
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