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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय जीवों का वर्णन
- तेइंदियाणं घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियवेमायाए भुजो भुजो परिणमंति। चरिंदियाणं चरिखदियघाणिदिय-जिभिदियफासिंदियत्ताए भुजो भुजो परिणमंति ।
शब्दार्थ-तेइंदिय चरिदियाणं-तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों की, ठिइए-स्थिति में, णाणत्तं-भेद है । जाव-यावत्, अणेगाइं च णं भागसहस्साई-अनेक हजारों भाग, अणाघाइज्जमाणाइं—बिना सूंघे, अणासाइज्जमाणाइं—बिना चख, अफासाइज्जमाणाइंबिना स्पर्श ही, विद्धंसं आगच्छंति-नष्ट हो जाते हैं।
मंते-हे भगवन् ! एएसि-इन, अणाघाइज्जमाणाणं-बिना सूंघे हुए, अणासाइज्जमाणाणं-बिना चखे हुए, अणाफासाइज्जमाणाणं-बिना स्पर्श किये हुए, पोग्गलाणं-पुद्गलों में कौन किससे थोड़ा, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? पुच्छा-ऐसा प्रश्न करना चाहिए।
गोयना-हे गौतम ! अणाघाइज्जमाणा-बिना सूंघे हुए, पोग्गला-पुद्गल, सम्वत्योवा --सब से थोड़े हैं, अणासाइज्जमाणा-बिना चखे हुए पुद्गल, अणंतगुणा-उनसे अनन्तगुणा हैं, अफासाइज्जमाणा-बिना स्पर्श किये हुए पुद्गल, अणंतगुणा-अनन्तगुणा हैं, तेइंदियाण-तेइन्द्रिय जीवों द्वारा किया हुआ आहार उनके, घाणिदिय-जिभिदिय-फासिदियवेमायाए-घ्राणेन्द्रिय के रूप में, जिव्हेन्द्रिय के रूप में और स्पर्शनेन्द्रिय के रूप में विमात्रा से, भज्जो मुज्जो-बारबार, परिणमंति-परिणत होता है । चरिदियाणं-चौइन्द्रिय जीवों द्वारा मान किया हुआ आहार उनके, चक्खिदिय-घाणिविय-जिब्मिदिय-फासिदियत्ताए-चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेंद्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय रूप में विमात्रा से, भुज्जो भुज्जो-बारम्बार परिणमंति-परिणत होते हैं। ___ भावार्थ-४० तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों की स्थिति में भेद है। शेष सब पहले की तरह है। यावत् अनेक हज़ारों भाग बिना सूंघे, बिना चखे और बिना स्पर्श ही नष्ट हो जाते हैं।
४१ प्रश्न-हे भगवन् ! इन बिना सूंघे हुए, बिना चखे हुए और बिना स्पर्श किये हुए पुद्गलों में कौन किससे थोड़ा, बहुत, अल्प या विशेषाधिक है ? • ऐसा प्रश्न करना चाहिए।
४१ उत्तर-हे गौतम ! बिना सूंघे हुए पुद्गल सब से थोडे हैं, बिना
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