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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असंवृत अनगार
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शब्दार्थ-भंते-हे भगवन् ! असंवुडे--असंवृत, अणगारे--अनगार, किं--क्या, सिन्झइ -सिद्ध होता है ? बुज्मइ -बुद्ध होता है ? मुच्चइ-मुक्त होता है ? परिणिव्वाइ--निर्वाण प्राप्त करता है ? सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ-सब दुःखों का अन्त करता है ?
गोयमा-हे गौतम ! णो इणद्वै समठे-यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
से केणणं-हे भगवन् ! किस कारण से, जाव-यावत्, गो अंतं करेइ-सब दुःखों का अन्त नहीं करता है ?
___ गोयमा-हे गौतम ! असंवडे अणगारे-असंवृत अनगार, आउयवज्जाओ-आयु कर्म को छोड़कर, सिढिलबंधणबद्धाओ-शिथिल बन्धन से बांधी हुई, सत्तकम्मपगडीओ-सात कर्म प्रकृतिओं को, धणियबंधणबद्धाओ-गाढ रूप से बान्धता, पकरेइ-प्रारम्भ करता है, हस्सकालठिइयाओ-अल्पकालीन स्थिति वाली प्रकृतियों को, दोहकालठिइयाओ-दीर्घकालीन स्थिति वाली, पकरेइ-करता है । मंदाणुभावाओ-मन्द अनुभाग वाली प्रकृतियों को, तिव्वाणुभावाओ-तीव्र अनुभांग वाली, पकरेइ-करता है, अप्पपएसगाओ-अल्प प्रदेश वाली प्रकृतियों को, बहुप्पएसगाओ-बहुत प्रदेश वाली, पकरेइ-करता है, च-और, आउयं कम्म आयु कर्म को, सिय बंधइ सिय णो बंधइ-कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । अस्सायावेयणिज्ज कम्म-असातावेदनीय कर्म को, भुज्जो भुज्जो-बारम्बार, उवचिणइउपार्जन करता है, अणाइयं-अनादि, अणवयग्गं-अनवदन-अनन्त, दोहमद्धं-दीर्घ मार्ग वाले, चाउरंतसंसारकंतार-चतुर्गति वाले संसार रूपी अरण्य में, अणुपरियट्टइ-बारबार पर्यटन करता है, से तेणद्रेणं-इस कारण से, गोयमा-हे गौतम ! असंवुडे अणगारे-असंवृत अनगार, णो सिज्मइ-सिद्ध नहीं होता है, जाव-यावत्, णो अंतं करेइ-सब दुःखों का अन्त नहीं करता हैं। - भावार्थ-५६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असंवृत अनगार सिद्ध होता है ? बुद्ध होता है ? मुक्त होता है ? निर्वाण प्राप्त करता है ? सब दुःखों का अन्त करता है ? ... ५६ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
५७ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से यावत् वह सब दुःखों का अन्त नहीं करता हैं ?
५७ उत्तर-हे गौतम ! असंवृत अनगार आयु कर्म को छोड़ कर शिथिल
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