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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असंयत जीव की गति
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आठ भवों के अन्दर ही उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जायगी । कहा भी है
" जहणियं चरित्ताराहणं आराहित्ता सत्तट्ठभवग्गहणेहि सिज्झइ"।
अर्थात्-जघन्य चारित्र की आराधना करने वाला भी सात आठ भव' ग्रहण करके सिद्ध हो जाता है ।
इस प्रमाण से यह स्पष्ट है कि संवृत अनगार सात-आठ भव में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, किन्तु असंवृत अनगार के लिए यह नियम लागू नहीं होता । असंवृत अनगार की परम्परा तो अपार्द्ध पुद्गल परावर्तन (अर्द्ध पुद्गल परावर्तन से कुछ कम) भी हो सकती है । अतएव संवृत अनगार और असंवृत अनगार का भेद स्पष्ट है।
___इस प्रकार यह सूत्र साक्षात् रूप से चरमशरीरी संवृत अनगार के लिए लागू होता है और परम्परा से अचरमशरीरी संवृत अनगार के लिए लागू होता है।
असंवृत अनग्गर विराधक होता है, किन्तु संवृत अनगार आराधक होता है । यह भी दोनों में अन्तर है।
असंयत जीव को गति
६० प्रश्न-जीवे गंभंते ! असंजए अविरइए अप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्चा देवे सिया ?
६० उत्तर-गोयमा ! अत्गइए देवे सिया, अत्थेगइए णो देवे सिया।
६१ प्रश्न-से केणटेणं जाव इओ चुए पेचा अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए णो देवे सिया ? . ६१ उत्तर-गोयमा ! जे इमे जीवा गामा-गर-णगर-णिगम-रायहाणी-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा-सम-सण्णिवेसेसु-अकाम
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