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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असंयत जीव की गति
• पापकर्मों को नष्ट नहीं किया है वह अप्रतिहतपापकर्मा कहलाता है । सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने पर सर्व विरति आदि अंगीकार करके पापकर्मों का निरोध न करने वाला अप्रत्याख्यातपापकर्मा कहलाता है । इस प्रकार जिसने न सम्यक् श्रद्धा धारण की है और न व्रत धारण किये हैं वह अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा कहलाता है।
गौतम स्वामी का प्रश्न यह है कि जिनका मिथ्यात्व नहीं छूटा है उन असंयतियों में से यहाँ से अर्थात् मनुष्यगति और तिर्यञ्चगति से मरकर देव होता है या नहीं ? भगवान् ने फरमाया कि कोई होता है और कोई नहीं। इस पर गौतमस्वामी ने फिर पूछा कि-हे भगवन् ! इसका क्या कारण हैं ? इस प्रश्न का उत्तर जो भगवान् ने फरमाया उसमें अनेक स्थानों के नाम आये हैं । उनका अर्थ इंस प्रकार है
ग्राम-देश के मनुष्यों के लिए जो आश्रय रूप स्थान हो उसे ग्राम कहते हैं। जहां सामान्य बुद्धि वाले और विशेष बुद्धि वाले दोनों प्रकार के मनुष्य रहते हों उसे ग्राम कहते हैं।
___ आकर-खान (खदान) को आकर कहते हैं । जहाँ लोहा आदि धातुएं निकलती हैं वह भूभाग आकर कहलाता है। .
: नगर-न कर अर्थात् जहाँ पर कर (टेक्स) न लगे वह स्थान नगर (न+कर) कहलाता है।
.निगम-जहाँ व्यापारी अधिक संख्या में रहते हों उस बस्ती का नाम निगम है अर्थात् जहाँ माल का आना-जाना बना रहता हो और व्यापार खूब होता हो वह निगम कहलाता है।
.. राजधानी-जहाँ राजा स्वयं स्थायी रूप से रहता हो वह राजधानी हैं। . - खेट-जिस छोटी बस्ती के चारों ओर धूल का कोट हो उसे खेट या खेड़ा कहते हैं।
कर्बट-खराब नगर कर्बट-कस्बा कहलाता है । जिसकी गणना न ग्राम में की जा सके और न नगर में।
मडम्ब-जिस बस्ती के चारों तरफ ढाई-ढाई कोस तक दूसरी बस्ती न हो उसे मडम्ब कहते हैं।
द्रोणमुख - जहाँ के लिए जलमार्ग भी हो और स्थलमार्ग भी हो वह बस्ती द्रोणमुख कहलाती है।
___ पट्टण = पत्तन पाटण-जहां देश देशान्तर से आया हुआ माल उतरता है उसे पट्टण कहते हैं । पट्टण दो प्रकार के होते हैं-जलपट्टण और स्थलपट्टण । जो जल के बीच में या किनारे पर बसा हो वह 'जलपट्टण' है और जो स्थल में बसा हुआ हो-जहाँ स्थलमार्ग से
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