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भगवती सूत्र-श. उ. १ तिर्यञ्च और मनुष्य का वर्णन
चखे हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुणा हैं और बिना स्पर्श किये हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुणा हैं।
तेइन्द्रिय जीवों द्वारा खाया हुआ आहार घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के रूप में विमात्रा से बारबार परिणत होता है । चौइन्द्रिय जीवों द्वारा खाया हुआ आहार च इन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय रूप में विमात्रा से बारम्बार परिगत होता है।
विवेचन-तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों का कथन बेइन्द्रिय जीवों की तरह ही कहना चाहिए । किन्तु स्थिति आदि में अन्तर है। वह इस प्रकार है-तेइन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट ४९ रात दिन की है । चौइन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट छह मास की है । तेइन्द्रिय जीव जो आहार करते हैं: वह उनके घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय, इन तीन इन्द्रिय रूप में परिणत होता है और चौइन्द्रिय जीवों के चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय इन चार इन्द्रिय के रूप में परिणत होता है।
शेष सारा वर्णन बेइन्द्रियों के समान समझना चाहिए।
पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य का वर्णन
• ४२-पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं ठिई भणिऊणं उस्सासो वेमायाए । आहारो अणाभोगणिव्वत्तिओ अणुसमयं अविरहिओ। आभोगणिव्वत्तिओ जहण्णेणं अंतोमुहुत्तरस, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स । सेसं जहा चउरिंदियाणं जाव णो अचलियं कम्मं णिज्जरेंति ।
४३-एवं मणुस्साण वि, णवरं आभोगणिव्वत्तिए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स, सोइंदिय ५ वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति, सेसं जहा तहेव जाव णिजठेति ।
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