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भगवती सूत्र - १ उ. १ बेइन्द्रिय जीवों का वर्णन
जाता है, च- और, अगाई भागसहस्साइं अनेक हजारों भाग, अणासाइज्जमाणाइं- आस्वाद किये बिना और, अफासाइज्जमाणाई-स्पर्श किये बिना, विद्धंसं आगच्छंति - नष्ट हो जाते हैं,
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भंते - हे भगवन् ! एएस- -इन, अणासाइज्जमाणाणं -- बिना आस्वादन किये हुए, य - और, अफासाइज्जमाणाणं - बिना स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से, करे - कौन से पुद्गल, कयरेंहितो - किन पुद्गलों से, अप्पा - अल्प हैं, वा- अथवा, बहुया - बहुत हैं, वा -- अथवा, तुल्ला - तुल्य हैं, वा-अथवा विसेसाहिया - विशेषाधिक हैं ?
गोमा - हे गौतम! सव्वत्थोवा - सब से थोड़े, पोग्गला - पुद्गल, अणासाइज्ज़माणाआस्वाद में नहीं आये हुए हैं और, अफासाइज्जमाणा - स्पर्श में नहीं आये हुए पुद्गल, अनंतगुणा — उनसे अन्तगुणा हैं ।
भंते - हे भगवन् ! बेइंदिया - बेइन्द्रिय जीव, जे- जिन, पोग्गले - पुद्गलों को, आहारत्ताए – आहार रूप में ग्रहण करते हैं । ते वे, पोग्गला - पुद्गल, तेसि - उनके, कीसत्ताए – किस रूप में, भुज्जो भुज्जो - बारम्बार, परिणमंति - परिणत होते हैं ?
गोयमा - हे गौतम! जिन्भिदिय फासिदिय वेमायत्ताए – वे पुद्गल उनको विविधतापूर्वक जिव्हेंन्द्रियपने और स्पर्शनेन्द्रियपने, भुज्जो भुज्जो - बार-बार, परिणमतिपरिणत होते हैं ।
भंते - हे भगवन् ! बेइंदियाणं - बेइन्द्रिय जीवों को क्या, पुण्याहारिया - पहले आहार किये हुए, पोग्गला - पुद्गल, परिणया – परिणत हुए हैं ?
तव - यह सब वक्तव्य पहले की तरह समझना चाहिए। जाव- यावत्, अचलियंकम्मं - अचलित कर्म की, णो णिज्जरंति - निर्जरा नहीं करते हैं ।
भावार्थ - ३४ बेइन्द्रिय जीवों की स्थिति कह देनी चाहिए। उनका श्वासोच्छ्वास विमात्रा से कहना चाहिए ।
३५ प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ?
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३५ उत्तर - हे गौतम ! बेइन्द्रिय जीवों का आहार दो प्रकार का है । उनमें से अनाभोगनिवर्तित आहार तो पहले के समान समझना चाहिए। आभोगनिर्वातित आहार की अभिलाषा विमात्रा से असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त में
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