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७.
भगवतीसूत्र-श. १ उ. १ पृथ्वीकाय आदि का वर्णन
३० प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीवों को कितने समय में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ?
३० उत्तर-हे गौतम! प्रतिसमय निरन्तर आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है।
३१ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीव किसका आहार करते हैं ? .. ३१ उत्तर-हे गौतम! द्रव्य से अनन्त प्रदेश वाले द्रव्य का आहार करते हैं। इत्यादि वर्णन नारकी जीवों के समान जानना चाहिए । पृथ्वीकाय के जीव व्याघात न हो तो छहों दिशाओं से आहार लेते हैं। व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पांच दिशाओं से आहार लेते हैं। वर्ण को अपेक्षा पांचों वर्ण के द्रव्य का आहार करते हैं। गन्ध को अपेक्षा दोनों गन्ध वाले, रस की अपेक्षा पांचों रस वाले और स्पर्श की अपेक्षा आठों स्पर्श वाले द्रव्य का आहार करते हैं । शेष सब वर्णन पहले के समान समझना चाहिए।
३२ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकाय के जीव कितने भाग का आहार करते है और कितने भाग का स्पर्श करते है-आस्वादन करते है ? ___३२ उत्तर-हे गौतम ! असंख्यातवें भाग का आहार करते हैं और अनन्तवें भाग का स्पर्श करते है-आस्वादन करते हैं।
. ३३ प्रश्न हे भगवन् ! उनके आहार किये हुए पुद्गल किस रूप में बार-बार परिणत होते हैं ? _ ३३ उत्तर-हे गौतम ! स्पर्शनेन्द्रिय के रूप में विमात्रा से अर्थात् इष्ट अनिष्ट आदि विविध प्रकार से बारबार परिणत होते हैं। शेष सब नारकी जीवों के समान समझना चाहिए। यावत् चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, किंतु अचलित कर्म को निर्जरा नहीं करते हैं। इसी प्रकार अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीवों के विषय में समझना चाहिए, किन्तु इतना अंतर है कि इन सब की स्थिति अलग-अलग है, सो जिसकी जितनी स्थिति हो
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