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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ नागकुमार देवों का वर्णन . '
गोयमा-हे गौतम ! जहण्णेणं-जघन्य, दस वाससहस्साइं-दस हजार वर्ष की और उक्कोसेणं-उत्कृष्ट, देसूणाई दो पलिओवमाइं-देशोन--कुछ कम दो पल्योपम की कही गई
भंते-हे भगवन् ! णागकुमारा-नागकुमार, केवइयकालस्स-कितने समय में, आणमंति-श्वास लेते हैं ? पाणमंति-निःश्वास छोड़ते हैं ? ऊससंति-उच्छ्वास लेते हैं ? नीससंति-निःश्वास छोड़ते हैं ?
- गोयमा-हे गौतम ! जहण्णेणं-जघन्य से, सत्तण्ह-सात, थोवाणं-स्तोक में और उक्कोसेणं-उत्कृष्ट से, महत्तपुहत्तस्स-मुहूर्त पृथक्त्व अर्थात् दो मुहूर्त से लेकर नव'मुहूर्त के अन्दर किसी भी समय, आगमंति वा ४-श्वासोच्छ्वास लेते और छोड़ते हैं । - . भंते-हे भगवन् ! क्या, नागकुमारा-नागकुमार देव, आहारट्ठी-आहारार्थी हैं ?
हंता-हाँ, गौतम ! नागकुमार देव, आहारट्ठी-आहारार्थी हैं।।
भंते-हे भगवन् ! णागकुमाराणं-नागकुमार देवों को, केवइयकालस्स-कितने काल में, आहारठे-आहार की अभिलाषा, समुप्पज्जइ-उत्पन्न होती है ? ।
गोयमा-हे गौतम ! णागकुमाराणं-नागकुमार देवों का, आहारें-आहार, दुविहे-दो प्रकार का, पण्णत्ते-कहा गया है। आभोगणिव्वत्तिए--आभोगनिर्वसित और, अणाभोगणिबत्तिए-अनाभोगनिवर्तित । अणाभोगणिन्वत्तिए आहारठे-अनाभोग निर्वतित आहार की अभिलाषा, अणुसमयं अविरहिए-प्रतिसमय विरह रहित, समुप्पज्जइ-होती है । आभोगजिव्वत्तिए-आभोग निर्वतित, आहारठे-आहार की अभिलाषा, जहणेणं-जघन्य से, चउत्थभत्तस्स-चतुर्थभक्त अर्थात् एक अहोरात्र के बाद, और उक्कोसेणं-उत्कृष्ट, दिवसपुहत्तस्स--दिवस पृथक्त्व के बाद, समुप्पज्जइ-उत्पन्न होती हैं। सेसं-बाकी सारा वर्णन, जहा असुरकुमाराणं-असुरकुमार देवों की तरह समझना चाहिए । जाव-यावत्, चलियं कम्म-चलित कर्म की, णिज्जरेंति-निर्जरा करते हैं, जो अचलियं कम्मं णिज्जरेंति-किन्तु अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते हैं । यहाँ तक कह देना चाहिए। एवं-इसी तरह, सुव्वणकुमाराणं विं -सुवर्ण कुमारों का भी कह देना चाहिए । जाब-यावत्, पणियकुमाराण-स्तनितकुमारों तक कह देना चाहिए।
भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! नागकुमार देवों की स्थिति कितनी है ?
२३ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट कुछ कम दो पल्योपम की है।
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