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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ नागकुमार देवों का वर्णन
उनमें से २३ सूत्र असुरादि प्रकरण में समान हैं। सिर्फ विशेषता यह है कि असुरकुमारों में । उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम से कुछ अधिक ही है, वह असुरराज बलि की अपेक्षा से समझनी ___ चाहिए, क्योंकि चमरेन्द्र का आयुष्य एक सागरोपम होता है और बलिन्द्र का आयुष्य एक सागरोपम से कुछ अधिक होता है ।
__मूल में असुरकुमारों के श्वासोच्छ्वास के लिए सात स्तोक का कथन किया गया है, उसका मतलब यह है कि-सात स्तोक बीतने के बाद वे श्वासोच्छ्वास लेते हैं । स्तोक का लक्षण इस प्रकार कहा गया है
हदुस्स अणवगल्लस्स, णिरुवकिट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति बुच्चइ ॥ सत्त पाणणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे ।
लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ अर्थ-रोगरहित, स्वस्थ हृष्टपुष्ट प्राणी के एक श्वासोच्छ्वास को एक प्राण कहते हैं । सात प्राणों का एक स्तोक होता है। सात स्तोक का एक लव होता है । ७७ लवों का एक मुहूर्त होता है।
जघन्य स्थिति वाले असुरकुमार जघन्य काल में श्वासोच्छ्वास लेते हैं और उत्कृष्ट स्थिति वाले असुरकुमार उत्कृष्ट काल में श्वासोच्छ्वास लेते हैं । असुरकुमारों के श्वासोच्छ्वास का उत्कृष्ट काल एक पक्ष से कुछ अधिक है।
___ 'चउत्थभत्त- चतुर्थभक्त' यह उपवास की संज्ञा है । यहां 'चउत्थभक्त' का अर्थ है-एक दिन रात अर्थात् आठ प्रहर । असुरकुमार एक दिन आहार कर लेने पर फिर दूसरा दिन और रात बीत जाने के बाद तीसरे दिन उनको आहार की अभिलाषा होती हैं । यह उनके आहार की अभिलाषा का जघन्य काल है । उत्कृष्ट काल तो एक हजार वर्ष है अर्थात् एक हजार बर्ष बीतने के बाद उनको आहार की अभिलाषा होती है । जघन्य स्थिति वालों को जघन्य काल में और उकृष्ट स्थिति वालों को उत्कृष्ट काल में आहार की अभिलाषा होती है। .
नागकुमार देवों का वर्णन
२३ प्रश्न-णागकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
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