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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असुरकुमार देवों का वर्णन
रोत-आहार करते है ? -
___गोयमा-हे गौतम ! दवओ-द्रव्य की अपेक्षा, अणंतपएसियाई-अनन्तप्रदेशी, दवाई -द्रव्यों का आहार करते हैं, खेत्त-काल-भाव पण्णवणागमेणं-क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा जैसा पन्नवणा सूत्र के अट्ठाइसवें पद में कहा है, वैसा वर्णन यहाँ भी जान लेना चाहिए ।
भंते-हे भगवन् ! तेसि-उन असुरकुमारों द्वारा आहार किये हुए, पोग्गला-पुद्गल, कीसत्ताए-किस रूप में, भुज्जो मुज्जो-बारबार, परिणमंति-परिणत होते हैं ?
गोयमा-हे गौतम ! सोइंदियत्ताए-श्रोत्रेन्द्रिय रूप में, जाव फासिदियत्ताए-यावत् स्पर्शनेन्द्रियपने, सुरूवत्ताए-सुरूपपने, सुवण्णत्ताए-सुवर्णपने, इट्ठत्ताए-इष्टपने, इच्छियत्ताए -इच्छियपने, भिज्जियत्ताए-मनोहरपने, उदृत्ताए-ऊर्ध्वपने और, सुहत्ताए-सुखपने, भुज्जो भुज्जो-बारबार, परिणमंति-परिणत होते हैं किन्तु, णो अहत्ताए, जो दुहत्ताए-अधःरूप में और दुःख रूप में नहीं परिणमते हैं।
भंते-हे भगवन् ! क्या, असुरकुमाराणं-असुरकुमारों द्वारा, पुव्वाहारिया-पहले आहार किये हुए, पोग्गला-पुद्गल, परिणया-परिणत हुए हैं ?
गोयमा-हे गौतम ! असुरकुमाराभिलावणं जहा रइयाणं-असुरकुमार के अभिलाप से अर्थात् नारकी के स्थान पर असुरकुमार शब्द का प्रयोग करके यह सब नारकियों के समान ही समझना चाहिए, जाव-यावत्, अचलियं कम्म-अचलित कर्म की, णो णिज्जरेंति -निर्जरा नहीं करते हैं।
. भावार्थ १६-गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि-हे भगवन् ! असुरकुमारों की स्थिति कितनी है ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम से कुछ अधिक की है।
१७ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार कितने समय में श्वास लेते हैं और कितने समय में निःश्वास छोड़ते हैं ? ।
१७ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य सात स्तोक रूप काल में और उत्कृष्ट एक पक्ष से कुछ अधिक काल में श्वास लेते हैं और छोड़ते हैं।
१८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असुरकुमार आहार के अभिलाषी होते हैं ? १८ उत्तर-हाँ, गौतम ! असुरकुमार आहार के अभिलाषी होते हैं।
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