________________
भगवती सूत्र--श. १ उ. १ असुरकुमार देवों का वर्णन
१९ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमारों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ?
__ १९ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमारों का आहार दो प्रकार का कहा गया है-आभोग निर्वतित और अनाभोग निर्वतित । अनाभोगनिर्वतित अर्थात् अनिच्छापूर्वक होने वाले आहार की अभिलाषा उन्हें निरन्तर प्रतिसमय हुआ करती है । आभोगनिवर्तित अर्थात् इच्छापूर्वक होने वाले आहार की अभिलाषा उन्हें जघन्य चतुर्थ भक्त से अर्थात् एक अहोरात्र से और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष से कुछ अधिक काल से होती है।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमार किन द्रव्यों का आहार करते हैं ? ' ___२० उत्तर-हे गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा अनन्त प्रदेशी पुद्गलों का आहार करते हैं।
: क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा जैसा पन्नवणा सूत्र के अट्ठाईसवें पद में कहा है वैसा ही यहाँ समझ लेना चाहिए।
२१ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमारों द्वारा आहार किये हुए पुद्गल किस रूप में बार-बार परिणत होते हैं ? ... २१ उत्तर-हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय रूप में यावत् स्पर्शनेन्द्रियपने, सुरूप
पने, सुवर्णपने, इष्टपने, इच्छितपने, मनोहरपने, ऊर्ध्वपने और सुखपने बार-बार परिणत होते हैं । किन्तु अधःपने और दुःखपने परिणत नहीं होते हैं।
२२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असुरकुमारों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए ?
२२ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार के अभिलाप से अर्थात् नारकी के स्थान पर असुरकुमार शब्द का प्रयोग करते हुए यह सारा वर्णन नारकियों के समान ही समझना चाहिए । यावत् अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते हैं।
विवेचन-चौबीस दण्डकों में से पहला नैरयिक दण्डक कहा गया। उसके बाद क्रम प्राप्त असुरकुमारों का कथन किया गया है। नैरयिक प्रकरण में ७२ सूत्र कहे गये हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org