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- भगवती सूत्र-श. १ उ. १ काल चलितादि सूत्र
भंते - हे भगवन् ! जेरइया-नारक जीव, तेयाकम्मत्ताए-तैजस कार्मण रूप में, गहिए-ग्रहण किये हुए..जे-जिन, पोग्गले-पुद्गलों की, उदोरेंति-उदीरणा करते हैं. ते-सो किं-क्या, तीयकालसमयगहिए-अतीत काल समय में ग्रहण किये हुए, पोग्गले-पुद्गलों की, उदीरेंति-उदीरणा करते हैं ? या, पडुप्पण्णकालसमयघेप्पमाणे-वर्तमान काल समय में ग्रहण किये जाते हुए, पोग्गले-पुद्गलों की, उदीरेंति-उदीरणा करते हैं ? या गहणसमयपुरक्सडेआगामी समय में ग्रहण किये जाने वाले-भविष्पकालीन, पोग्गले-पुद्गलों की उदीरणा करते है? .. गोयमा-हे. गौतम ! तीयकालसमयगहिए-अतीत काल समय में ग्रहण किये हुए, पोग्गलेपुद्गलों की, उदीरेंति-उदीरणा करते हैं, पडुप्पण्णकालसमयघेप्पमाणे-वर्तमान काल समय में ग्रहण किये जाते हुए, पोग्गले-पुद्गलों की, णो उदीरेंति-उदीरणा नहीं करते हैं, गहणसमयपुरक्खडे-आगामी काल में ग्रहण किये जाने वाले, पोग्गले-पुद्गलों को, जो उदीरेंति-उदीरणा नहीं करते हैं, एवं-इसी प्रकार, वेदेति-वेदते हैं और, णिज्जरेंति-निर्जरा करते है।
भंते-हे भगवन् ! किं-क्या, पेरइया-नैरयिक जीव, जीवानों-जीव प्रदेश से, चलियं-चलित, कम्म-कर्म को, बंधति-बांधते हैं ? या, अचलियं - अचलित, कम्मकर्म को, बंधंति -बांधते है ? .. गोयमा-हे गौतम ! चलियं-चलित, कम्म-कर्म को, जो बंधति नहीं बांधते हैं किन्तु, अचलियं-अचलित, कम्म-कर्म को, बंधंति-बांधते हैं।
भंते-हे भगवन् ! किं-क्या, गेरइया-नैरयिक जीव, जीवाओ-जीव-प्रदेश से, चलियं-चलित, कम्म-कर्म की, उदीरेंति-उदीरणा करते हैं ? या, अचलियं-अचलित, कम्म-कर्म की, उदीरेंति--उदीरणा करते हैं ?
__गोयमा-हे गौतम ! नरयिक जीव, चलियं-चलित, कम्म-कर्म की, णो उदीरैति-उदीरणा नहीं करते हैं, किन्तु, अचलियं-अचलित, कम्म-कर्म की, उदीरेंतिउदीरणा करते हैं, एवं इसी प्रकार, वेदेति-वेदन करते हैं, उयटृति-अपवर्तन करते हैं, संकाति-संक्रमण करते हैं, णिहतैति-निधत्त करते हैं, णिकािित-निकाचित करते हैं, सव्वेसु-इन सब पदों में, अचलियं-अचलित कहना चाहिए, जो चलियं-चलित नहीं कहना चाहिए।
भंते-भगवन् ! कि क्या, रइया-नरयिक जीव, जीवाओ-जीव-प्रदेश से, चलियं-चलित, कम्म-कर्म की, णिज्जरेंति-निर्जरा करते हैं ? या, अचलियं-अचलित कम्म-कर्म की, णिज्जरेंति-निर्जरा करते हैं ?
__ गोयमा-हे गौतम ! चलियं-चलित, कम्म-कर्म की, णिज्जरेंति-निर्जरा करते हैं,
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