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भगवतीसूत्र -- श. १ उ. १ काल चलितादि सूत्र
किन्तु, अचलियं – अचलित, कम्मं - कर्म की, जो णिज्जरेंति - निर्जरा नहीं करते हैं । गाथा का शब्दार्थ - बंध - बन्ध, उदय - उदय, वेद-वेदन, उयट्ट - अपवर्तन, संकमे— संक्रमण, हित्तण-निधत्तन, तह — तथा, णिकाये -निकाचन, इनके विषय में, अचलियं - अचलित, कम्मं कर्म, भवे― होता है और, णिज्जरए - निर्जरा में तुतो, जीवाओ - जीव प्रदेशों से, चलियं - चलित कर्म होता है
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भावार्थ - ११ प्रश्न - हे भगवन् ! नारकी जीव, जिन पुद्गलों को तैजस कार्मण रूप में ग्रहण करते हैं, क्या उन्हें अतीत काल समय में ग्रहण करते हैं ? या वर्तमान काल समय में ग्रहण करते हैं ? या भविष्य काल समय में ग्रहण करते हैं ? ११ उत्तर - हे गौतम ! अतीत काल समय में ग्रहण नहीं करते, वर्तमान काल समय में ग्रहण करते हैं, भविष्य काल समय में ग्रहण नहीं करते ।
१२ प्रश्न - हे भगवन् ! नारकी जीव, तैजस कार्मण रूप में ग्रहण किये हुए जिन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, सो क्या अतीत काल समय में ग्रहण किये हुए पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? या वर्तमान काल समय में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की उदीरणा करते हैं। या आगे ग्रहण किये जानेवाले भविष्य कालीन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ?
१२ उत्तर - हे गौतम! अतीत काल समय में ग्रहण किये हुए पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, वर्तमान काल समय में ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते और आगे ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की भी उदीरणा नहीं करते ।
जिस प्रकार उदीरणा का कहा है, उसी प्रकार वेदना और निर्जरा का भी कह देना चाहिए ।
१३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नारकी जीव, जीव- प्रदेश से चलित कर्म : को बांधते हैं या अचलित कर्म को बांधते हैं ?
१३ उत्तर - हे गौतम! चलित कर्म को नहीं बांधते, अचलित कर्म को बांधते है ।
१४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नारकी जीव, जीव- प्रदेश से चलित कर्म
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