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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ नारकों के भेद चयादि सूत्र ..
___ कर्मों की अवस्था विशेष को 'निधत्त' कहते हैं । 'निधत्त' अवस्था को प्राप्त हुए कर्मों में उद्वर्तनाकरण और अपवर्तनाकरण, ये दो 'करण' ही परिवर्तन कर सकते हैं, दूसरा कोई भी 'करण' उनमें परिवर्तन नहीं कर सकता । तात्पर्य यह है कि निधत्त' अवस्था से पहले तो दूसरे भी 'करण' लग सकते हैं किन्तु निधत्त अवस्था में उद्वर्तना और अपवर्तना, इन दो करणों के सिवाय कोई तीसरा करण नहीं लग सकता । जब कर्म पूर्वोक्त उद्वर्तना
और अपवर्तना करण के सिवाय और किसी 'करण' का विषय न हो, उस अवस्था का . नाम 'निधत्त' है।
निकाचित-जिन कर्मों को 'निधत्त' किया गया था उन्हें ऐसा मजबूत कर देना कि जिससे वे एक दूसरे से अलग न हो सकें और जिनमें कोई भी 'करण' कुछ भी फेरफार न कर सके, उसे 'निकाचित' करना कहते हैं। उदाहरणार्थ-सूइयों को एक दूसरे के पास इकट्ठा कर देना 'निधत्त' करना कहलाता है । उसके पश्चात् उन सूइयों को अग्नि में तपा कर हथौड़े से ठोक दिया गया और आपस में इस प्रकार मिला दिया गया कि जिससे वे एक दूसरे से अलग न हो सकें । सूइयों के समान कर्मों का इस प्रकार मजबूत हो जाना कि फिर उसमें कोई परिवर्तन न हो सके उसको 'निकाचित' होना कहते हैं ।
____तात्पर्य यह है कि 'निकाचित' कर्म वह कहलाता है जिसमें किसी प्रकार का 'संक्रमण' न हो सके । जिस रूप में वह बँधा है उसी रूप में भोगना पड़े, जिसमें अपवर्तनाकरण
और उद्वर्तनाकरण भी कुछ न कर सके । एक रोग साध्य होता है और एक असाध्य । असाध्य रोग में औषधि का प्रभाव नहीं पड़ता। इसी प्रकार निधत्त अवस्था तक तो उपाय हो सकता है, परन्तु 'निकाचित' अवस्था में कोई उपाय कारगर नहीं होता। 'निकाचित' कर्म अवश्य भोगने पड़ेगे।
_ 'भिज्जति' आदि पदों का संग्रह करने के लिए जो गाथा मूल में कही गई है उसका तात्पर्य यह हैं कि इन सब पदों को इसी प्रकार समझना चाहिए। .
___ उपर्युक्त अठारह सूत्रों में यह बतलाया गया है कि नारकी जीव कितने प्रकार के पुदगलों को भेदते हैं, चय करते हैं, उपचय करते हैं, उदीरणा, वेदना, निर्जरा, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन करते हैं ? इन सूत्रों में से अन्त के चार सूत्रों में (अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन, इन में) भूत, भविष्य और वर्तमान ये तीनों काल जोड़ देना चाहिए जिससे ये बारह सूत्र हो जायेंगे और प्रारम्भ के छह सूत्र (भेदन, चय, उपचय, उदीरणा, वेदना, निर्जरा) इनमें मिला देने से ये सब अठारह सूत्र हो जायेंगे।
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