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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
२३ • कहीं-कहीं अन्य द्वारों की व्याख्या के आधार पर भी नियुक्ति और भाष्य का पृथक्करण हुआ है, जैसेपृथ्वीकाय पिंड, अग्निकाय पिंड से सम्बन्धित द्वारों की नियुक्तिकार ने अत्यन्त संक्षिप्त व्याख्या की है अत: अप्काय से सम्बन्धित १७/१-३, २१/१,२, २२/१-६ तथा २७/१, २-ये सभी गाथाएं व्याख्यात्मक होने के कारण भाष्य की होनी चाहिए। इसी प्रकार धात्रीपिण्ड की १९८/१-१५ गाथाएं तथा आजीव पिण्ड की २०७/१-४-गाथाएं भी भाष्य की होनी चाहिए क्योंकि आगे दूती और निमित्त आदि द्वार की व्याख्या बहुत संक्षिप्त में की गई है। • कहीं-कहीं टीका में गाथा व्याख्यात न होने पर भी यदि पिण्डनियुक्ति की हस्तप्रतियों में गाथा मिली है तो विषय से सम्बद्ध गाथा को नियुक्ति के क्रमांक में जोड़ा है। जो गाथा विषय से असम्बद्ध या प्रक्षिप्त लगी, उसे गाथाओं के क्रम में रखने पर भी मूल क्रमांक के साथ नहीं जोड़ा है, जैसे १७३/१ । यदि एक दो प्रतियों में भी गाथा मिली है तो उन गाथाओं को भी गाथाओं के क्रम में रखा है। यदि व्याख्यात्मक प्रतीत हुई तो उसको मूल क्रमांक में नहीं जोड़ा है, जैसे-२३१/५ गाथा केवल अ और बी प्रति में मिलती है। इसी प्रकार हस्तप्रतियों में न मिलने पर भी यदि टीका या अवचूरि में वह गाथा है तो नियुक्ति की प्रतीत होने पर मूल क्रमांक में जोड़ा है अन्यथा क्रम में रखकर भी क्रमांक के साथ नहीं जोड़ा, जैसे-१९२/६, ७, २५३/३ गाथाएं। • कहीं-कहीं तो स्पष्टतया प्रतीत होता है कि इतनी गाथाएं बीच में भाष्य की अथवा प्रक्षिप्त होनी चाहिए। जैसे ग्रहणैषणा के प्रसंग में गा. २३६ में नियुक्तिकार उल्लेख करते हैं-भावम्मि य दसपदा होति । बीच में वानरयूथ से सम्बन्धित कथा का विस्तार करने वाली तीन गाथाएं अतिरिक्त प्रतीत होती हैं। दसपद से सम्बन्धित गाथा २३७ वीं है। विषय की दृष्टि से भी २३६ वीं गाथा २३७ से जुड़ती है। • भाष्य-गाथा को पहचानने का एक तरीका यह भी है कि जहां भाष्यकार सभी द्वारों की व्याख्या कर रहे हैं, वहां केवल एक द्वार की व्याख्या वाली गाथा को नियुक्ति के क्रम में नहीं जोड़ा है। • जिन गाथाओं को हमने नियुक्तिगत नहीं माना, उनको नियुक्ति के क्रम में रखकर भी नियुक्ति के मूल क्रमांक के साथ नहीं जोड़ा है, जैसे ३/१, ४४/१-४ आदि।
कहीं-कहीं गाथाओं के बारे में निर्णय करना अत्यन्त दुष्कर कार्य था, वहां हमने अपने चिन्तन के आधार पर भी गाथाओं का निर्णय किया है। पृथक्करण के ये बिन्दु अन्य नियुक्तियों को भाष्य से पृथक् करने में भी सहयोगी बने हैं। पिण्डनियुक्ति की विषयवस्तु एवं वैशिष्ट्य
पिण्डनियुक्ति चरणकरणानुयोग से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ साधु की भिक्षाचर्या से सम्बन्धित अनेक विषयों को अपने भीतर समेटे हुए है। नंदीसूत्र में जहां कालिक और उत्कालिक सूत्रों का उल्लेख है, वहां पिण्डनियुक्ति और ओघनियुक्ति-दोनों का उल्लेख नहीं है। ऐसा लगता है कि
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