Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सम्बन्ध में भी अनेक जिज्ञासाएँ और समाधान हैं। अन्य दर्शनों के साथ लोक के स्वरूप पर और वर्णन पर तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन किया जा सकता है, पर विस्तारभय से यहाँ कुछ न लिखकर इस सम्बन्ध में जिज्ञासु पाठकों को लेखक का ‘जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण' देखने की प्रेरणा देते हैं।
समवसरण
भगवान् महावीर के युग में अनेक मत प्रचिलत थे । अनेक दार्शनिक अपने-अपने चिन्तन का प्रचार कर रहे थे । आगम की भाषा में मत या दर्शन को समवसरण कहा है। जो समवसरण उस युग में प्रचलित थे, उन सभी को चार भागों में विभक्त किया है— क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी ।
(१) क्रियावादी की विभिन्न परिभाषाएं मिलती हैं । प्रथम परिभाषा है कर्त्ता के बिना क्रिया नहीं होती । इसलिए क्रिया का कर्त्ता आत्मा है। आत्मा के अस्तित्व को जो स्वीकार करता है वह क्रियावादी है। दूसरी परिभाषा है— क्रिया ही प्रधान है, ज्ञान का उतना मूल्य नहीं, इस प्रकार की विचाराधारा वाले क्रियावादी हैं । तृतीय परिभाषा है— जीव- अजीव, आदि पदार्थों का जो अस्तित्व मानते हैं वे क्रियावादी हैं । क्रियावादियों के एक सौ अस्सी प्रकार बताये हैं।
(२) अक्रियावादी का यह मन्तव्य था कि चित्तशुद्धि की ही आवश्यकता है। इस प्रकार की विचारधारा वाले अक्रियावादी हैं अथवा जीव आदि पदार्थों को जो नहीं मानते हैं वे अक्रियावादी हैं। अक्रियावादी के चौरासी प्रकार हैं।
(३) अज्ञानवादी — अज्ञान ही श्रेय रूप है। ज्ञान से तीव्र कर्म का बन्धन होता है । अज्ञानी व्यक्ति को कर्मबन्धन नहीं होता। इस प्रकार की विचारधारा वाले अज्ञानवादी हैं । उनके सड़सठ प्रकार हैं ।
(४) विनयवादी —— स्वर्ग, मोक्ष आदि विनय से ही प्राप्त हो सकते हैं। जिनका निश्चित कोई भी आचारशास्त्र नहीं, सभी को नमस्कार करना ही जिनका लक्ष्य रहा है, वे विनयवादी हैं । विनयवादी के ३२ प्रकार हैं।
1
ये चारों समवरसण मिथ्यावादियों के ही बताये गये हैं । तथापि जीव आदि तत्त्वों को स्वीकार करने के कारण क्रियावादी सम्यग्दृष्टि भी हैं। शतक ३०, उद्देशक १ में इन चारों समवसरणों पर विस्तार से विवेचन किया
है ।
भगवतीसूत्र शतक ४, उद्देशक ५ में जम्बूद्वीप के अवसर्पिणीकाल में जो सात कुलकर हुए हैं, उनके नाम हैं—विमलवाहन, चक्षुष्मान, यशोमान, अभिचन्द्र, प्रसेनजित, मरुदेव और नाभि | कुलकरों के सम्बन्ध में जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति की प्रस्तावना में हम विस्तार से लिख चुके हैं।
कालास्यवेशी
भगवतीसूत्र शतक १, उद्देशक ९ में भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के कालास्यवेशी अनगार ने भगवान् महावीर के स्थविरों से पूछा— सामायिक क्या है ? प्रत्याख्यान क्या है । संयम क्या है ? संवर क्या है ? विवेक
[१०० ]