Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 879
________________ ७४८] तेरसुत्तरसयतमाइचत्तालीसुत्तरसयतमपजंता उद्देसगा एकसौ तेरह से एकसौ चालीस उद्देशक पर्यन्त मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा अट्ठाईस उद्देशकों का निर्देश १. मिच्छद्दिछिरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति। एवं एत्थ वि मिच्छादिट्ठिअभिलावेणं अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसका कायव्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ इकचत्तालीसइमे सए : तेरसुत्तरसयतमाइचत्तालीसुत्तरसयतमपज्जंता उद्देसगा समत्ता॥ ॥४१।११३-१४०॥ [१ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादृष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [१ उ.] मिथ्यादृष्टि के अभिलाप से यहाँ भी अभवसिद्धिक उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए॥ ४१ । ११३-०४० ॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ इकतालीसवाँ शतक : एकसौ तेरह से एकसौ चालीस उद्देशक पर्यन्त समाप्त ॥ *** एगचालीसुत्तरसयतमाइअडसट्ठिउत्तरसयतमपज्जंता उद्देसगा एकसौ इकतालीस से एकसौ अड़सढ उद्देशक पर्यन्त कृष्णपाक्षिक की अपेक्षा पूर्ववत् अट्ठाईस उद्देशकों का निर्देश १. कण्हपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ? एवं एत्थ वि अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥ इकचत्तालीसइमे सए : एगचत्तालीसुत्तरसयतमाइअडसट्ठिउत्तरसयतपजंता उद्देसगा समत्ता॥ ॥४११४१-१६८॥ [१ प्र.] भगवन् ! कृष्णपाक्षिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशिविशिष्ट नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! यहाँ भी अभवसिद्धिक-उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए। _ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ इकतालीसवाँ शतक : एकसौ इकतालीस से एकसौ अड़सठ उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण॥ ***

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