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भगवतीसूत्र के शतक, उद्देशक, पद और भावों की संख्या बताई है।
शतकों के प्रारम्भ में अंकित संग्रहणीगाथाओं के अनुसार तो भगवतीसूत्र के कुल उद्देशकों की संख्या १९२३ ही होती है, किन्तु यहाँ इस गाथा में १९२५ बताई है । २० वें शतक के १२ उद्देशक गिने जाते हैं, किन्तु प्रस्तुत वाचना में पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय इन तीनों का एक सम्मिलित (छठा) उद्देशक ही उपलब्ध होने से दस ही उद्देशक होते हैं। इस प्रकार दो उद्देशक कम हो जाने से गणनानुसार उद्देशक की संख्या १९२३ होती है।
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
शतकों का परिमाण इस प्रकार है— पहले से लेकर बत्तीसवें शतक तक किसी भी शतक में अवान्तर शतक नहीं हैं। तेतीसवें शतक से लेकर उनतालीसवें शतक तक सात शतकों में प्रत्येक में बारह - बारह अवान्तर शतक हैं। इस प्रकार ये कुल १२७- ८४ शतक हुए। चालीसवें शतक में २१ अवान्तर शतक हैं । इकतालीसवें शतक में अवान्तर- शतक नहीं है। इन सभी शतकों को मिलाने से सभी ३२+८४ + २१ + १ = १३८ शतक होते हैं।
समग्र भगवतीसूत्र में पदों की संख्या ८४ लाख बताई है। इस सम्बन्ध में वृत्तिकार का मन्तव्य यह है कि पदों की यह गणना किस प्रकार से की गई है, इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। पदों की गणना विशिष्ट - सम्प्रदाय - परम्परागम्य प्रतीत होती है ।
( २ ) संघ का जयवाद - इसके पश्चात् दूसरी गाथा (सूत्र ३) में संघ को समुद्र की उपमा देकर उसका जयवाद किया गया है।
(३) लिपिकार द्वारा नमस्कारमंगल— इसके पश्चात् लिपिकार द्वारा गौतमगणधरादि, भगवतीसूत्र एवं द्वादशांग गणिपिटक को नमस्कारमंगल किया गया है।
(४) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र की उद्देशविधि — तदनन्तर व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र की उद्देश - (वाचना) विधि का संक्षेप से निरूपण है ।
(५) श्रुतदेवी की स्तुति और प्रार्थना - फिर अन्तिम तीन गाथाओं द्वारा श्रुतदेवी (जिनवाणी) आदि देवियों की नमस्कारपूर्वक स्तुति करते हुए ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति की उनसे प्रार्थना की गई है।"
॥ भगवती व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सम्पूर्ण ॥
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१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठटिप्पण) भा. २, पृ. ११८३-८७
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९७९-९८०
(ग) भगवती. (हिन्दी - विवेचन) भा. ७, पृ. ३८०५