Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 894
________________ [७६३ परिशिष्ट-३ भगवतीनिर्दिष्ट शास्त्र-नामानुक्रमणिका [विशेष—पहला अंक शतक का सूचक है, दूसरा अंक उद्देशक का सूचन करता है तथा तीसरा अंक सूत्र संख्या के लिए प्रयुक्त हुआ है। जहाँ उद्देशक नहीं है, वहाँ उद्देशक के स्थान पर शून्य अंक रख दिया गया है।] अणुओ (यो) गद्दार (जैनागम) ५/४/२६, १७।१।२९ कप्प (शास्त्र) २२१२१२ अथव्वणवेद (वेदग्रन्थ) २।१।१२, ९।३३।२ कम्मपगडि (प्रज्ञापनासूत्र का तेईसवाँ पद) १।४।१ अंतकिरियापद (प्रज्ञापनासूत्र का वीसवाँ पद) १।२।१८ कायट्ठिति (प्रज्ञापनासूत्र का अठारहवाँ पद) ८।२।१५३ आयार (आचारांग-द्वादशांगी का प्रथम अंगसूत्र) किरियापद (प्रज्ञापनासूत्र का बाईसवाँ पद) ८।४।२ १६६।२१, २०८।१५, २५/३।११५, २५/३/११६ खंदय (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के द्वितीय शंतक का प्रथम आवस्सय (आवश्यकसूत्र) ९/३३/४३ उद्देशक) ५/२।१३ आहारुदेस (प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाइसवें पद का प्रथम गइप्पवाय (जैन आगम) ८/७/२४ उद्देशक) ६।२।१, ११।१।४०, १९/३८ गब्भुदेसय (प्रज्ञापनासूत्र के सत्रहवें पद का छठा उद्देशक) इतिहास (शास्त्र) २२१२१२ १९।२।१ इंदियउद्देसए (प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें पद का प्रथम चरिमपद (प्रज्ञापनासूत्र का दशवाँ पद) ८।२८ उद्देशक) २।४।१ छंद (शास्त्र) २२११२ उवओगपय (प्रज्ञापनासूत्र का उन्नीसवाँ पद) १६/७१ जजुव्वेद (वेद ग्रन्थ) २।११२, ९।३३।२ उववाइ (ति) य (औपपातिक सूत्र) ७/९/७, ८/९; जंबुद्दीवपण्णत्ति (जैन आगम) ७।१।३ ९।३०।३३।२३,२४,२८; ९।३३।४३,७३३/७२. जीवाभिगम (जैन आगम) २।३।१, २७२, २।७१, ७/३३१७७, ११।९।६, ११।९।९, ११।९।३०, ३।९।१,५।६।१४,६।८।३५,७/४।२, ८।२।१५४, ११।९।३३,११।११।२९, ११।११।५०,१३।६।२१, ८८।४६, ४७, ९।३।२, १०/५/२७, १०७१, १४।८।२१, २२, १५/०।१४८, २५/७/२०८ ११।९।२१, १२।३।३, १२।९।३३, १३।४।१०, ऊसासपद (प्रज्ञापनासूत्र का सातवाँ पद) ११६ १४।३।१७, १९।६।१, २५/५/४६ एयणदेस (भगवती के पाँचवें शतक का सातवाँ जोणिपय (प्रज्ञापनासत्र का नवाँ पद) १०२४ उद्देशक) ५/९/२ जोतिसामयण (शास्त्र) २।१।१२ ओगाहणसंठाण (प्रज्ञापनासूत्र का इक्कीसवाँ पद) जोतिसियउद्देस (य) (जीवाभिगमसूत्र का ज्योतिष्क ८।१।६७,६९,७१, ८/९।२६, ८।९।५२;८।९।८४, उद्देशक) ३।९।१, १०।५।२७ ८।९।९१ १०।१।११, २४।२०१८, २४।२०।६५ ठाणपद(य) (प्रज्ञापनासूत्र का चौथा पद) २७/१२, ओहीपय (प्रज्ञापनासूत्र का तेतीसवाँ पद) १६।१०।१ १५/०६८, १७।५।१

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