Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [७] पद्मलेश्यी अभवसिद्धिक-सम्बन्धी भी चार उद्देशक होते हैं ॥ ४१।७७-८० ॥ ८. सुक्कलेस्सअभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा॥ ४१। ८१-८४॥ [८] शुक्ललेश्यायुक्त अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक होते हैं ॥ ४१ । ८१-८४ ॥ ९. एवं एएसु अट्ठावीसाए (५७-८४) वि अभवसिद्धियउद्देसएसु मणुस्सा नेरइयगमेणं नेतंव्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ इकचत्तालीसइमे सए : सत्तावण्णइमाइचुलसीइमपज्जंता उद्देसंगा समत्ता॥ ४२। ५७-८४॥ _[९] इस प्रकार इन अट्ठाईस (५७ से ८४ तक) अभवसिद्धिक उद्देशकों में मनुष्यों-सम्बन्धी कथन नैरयिकों के आलापक के समान जानना चाहिए। ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ इकतालीसवाँ शतक : सत्तावन से चौरासी उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण॥
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७४४]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ७. सुक्कलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ओहियसरिसा॥४१॥ ५३-५६॥ . .
[७] शुक्ललेश्या-विशिष्ट भवसिद्धिक जीवों के भी औधिक के सदृश चार उद्देशक कहने चाहिए। ॥ ४१ । ५३-५६॥
८. एवं एए वि भवसिद्धिएहिं अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०॥४१। २९-५६॥
॥ इकचत्तालीसइमे सए : एगुणतीसइमाइछप्पनइमपजंता उद्देसगा समत्ता॥ [८] इस प्रकार भवसिद्धिकजीव-सम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक होते हैं। ' हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् ।
विवेचन भवसिद्धिक-सम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक-उद्देशक २९ से लेकर ५६ तक भवसिद्धिकजीव-सम्बन्धी २८ उद्देशक इस प्रकार हैं-(१) भवसिद्धिक सामान्य के ४ उद्देशक, (२) कृष्णलेश्यादि ६ लेश्याओं से युक्त भवसिद्धिक के प्रत्येक के चार-चार उद्देशक के हिसाब से ६४४-२४ उद्देशक होते हैं। इस प्रकार ४+२४-२८ उद्देशक होते हैं। ॥ इकतालीसवाँ शतक : उनतीसवें से छप्पनवें उद्देशक पर्यन्त समाप्त॥
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