Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 876
________________ सत्तावण्णइमाइचुलसीइमपज्जंता उद्देसगा सत्तावन से लेकर चौरासीवें उद्देशक पर्यन्त [ ७४५ प्रथम अट्ठाईस उद्देशकों के अनुसार अभवसिद्धिकसम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक-निरूपण १. अभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? जहा पढमो उद्देसगो, नवरं मणुस्सा नेरइया य सरिसा भाणियव्वा । सेवं तहेव । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० । [१ प्र.] भगवन् ! अभवसिद्धिक- राशियुग्म - कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१ उ.] गौतम ! प्रथम उद्देशक के समान इस उद्देशक का कथन करना चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्यों और नैरयिकों की वक्तव्यता समान जाननी चाहिए। शेष पूर्ववत् । ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् । २. एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा ॥। ४१ । ५७-६०॥ [२] इसी प्रकार चार युग्मों (कृतयुग्म से कल्योज तक) के चार उद्देशक कहने चाहिए ॥। ४१ । ५७-६० ॥ ३. कण्हलेस्सअभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववजंति ? ० एवं चेव चत्तारि उद्देसगा ।। ४१ । ६१-६४ ।। [३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी- अभवसिद्धिक- राशियुग्म - कृतयुग्मराशिरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [३ उ. ] इनके भी पूर्ववत् चार उद्देशक कहने चाहिए । ४१ । ६१-६४॥ ४. एवं नीललेस्सअभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा ॥। ४१ । ६५-६८ ॥ [४] इसी प्रकार नीललेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए ॥ ४१ ॥ ६५-६८ ॥ ५. एवं काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ॥। ४१ । ६९-७२ ॥ [५] इसी प्रकार कापोतलेश्यायुक्त अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक होते हैं ॥४१ । ६९-७२ ॥ ६. एवं तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ॥। ४१ । ७३-७६ ॥ [६] तेजोलेश्यी अभवसिद्धिक जीवों के भी इसी प्रकार चार उद्देशक कहने चाहिए ॥ ४१ । ७३-७६ ॥ ७. पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ॥। ४१ । ७७-८० ।।

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