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एगूणतीसइमाइछप्पन्नइमपज्जंता उद्देसगा
उनतीसवें से छप्पनवें उद्देशक पर्यन्त
प्रथम के अट्ठाईस उद्देशकों के अतिदेशपूर्वक भवसिद्धिकसम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक
१. भवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति ?
जहा ओहिया पढमगा चत्तारि उद्देसगा तहेव निरवसेसं एए चत्तारि उद्देसगा ?
सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ॥। ४१ । २९-३२॥
[१ प्र.] भगवन् ! भवसिद्धिकराशियुग्म- कृतयुग्मराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! पहले के चार औधिक उद्देशकों के अनुसार ( इनके विषय में भी) सम्पूर्ण चारों उद्देशक जानने चाहिए।'
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४१।२९-३२॥
२. कण्हलेस्सभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति ?०
जहा कण्हलेसाए चत्तारि उद्देसगा तहा इमे विभवसिद्धियकण्हलेस्सेहि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा ।। ४१ । ३३-३६ ॥
[२ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिकराशियुग्म- कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार कृष्णलेश्या-सम्बन्धी चार उद्देशक कहे हैं, उसी प्रकार भवसिद्धिक कृष्णलेश्यी जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए ॥ ४१ । ३३-३६ ॥ ।
३. एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहि वि चत्तारि ॥। ४१ । ३७-४० ॥
[३] इसी प्रकार नीललेश्यी भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए ॥ ४१ । ३७-४० ॥ ४. एवं काउलेस्सेहि चत्तारि उद्देगा ।। ४१ । ४१-४४॥
[४] इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक कहने चाहिए ॥ ४१ । १४-४४ ॥ ५. तेउलेस्सेहि वि चत्तारी उद्देसगा ओहियसरिसा ।। ४१ । ४५-४८॥
[५] तेजोलेश्यायुक्त भवसिद्धिक जीवों के भी औधिक के सदृश चार उद्देशक समझने चाहिए। ॥। ४१ । ४५-४८ ॥
६. पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा ।। ४१ । ४१-५२॥
[६] पद्मलेश्या वाले भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए ॥ ४१ । ४९-५२ ॥