Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 872
________________ [७४१ नवमाइअट्ठावीसइमपजंता उद्देसगा नौवें से अट्ठाईसवें उद्देशक पर्यन्त १. जहा कण्हलेस्सेहिं एवं नीललेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा निरवसेसा, नवरं नेरइयाणं उववातो जहा वालुयप्पभाए। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४१।९-१२॥ [१] कृष्णलेश्या वाले जीवों के अनुसार नीललेश्यायुक्त जीवों के भी पूर्ण चार उद्देशक कहने चाहिए। विशेष में नैरयिकों के उपपात का कथन वालुकाप्रभा के समान जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है। ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४१ । ९-१२॥ २. काउलेस्सेहि वि एवं चेव चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, नवरं नेरइयाणं उववातो जहा रयणप्पभाए। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४१।१३-१६॥ [२] इसी प्रकार कापोतलेश्या-सम्बन्धी भी चार उद्देशक कहने चाहिए। विशेष नैरयिकों का उपपात रत्नप्रभापृथ्वी के समान जानना चाहिए। शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४१ । १३-१६॥ ३. तेउलेस्सरासीजुम्मकडजुम्मअसुरकुमारा णं भंते ! कतो उववजंति ? एवं चेव, नवरं जेसु तेउलेस्सा अस्थि तेसु भाणियव्वं। एवं एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि उद्देसगा कायव्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४१ । १७-२०॥ [३ प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्या वाले राशियुग्म-कृतयुग्मरूप असुरकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? [३ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना, किन्तु जिनमें तेजोलेश्या पाई जाती हो उन्हीं के जानना। इस प्रकार ये भी कृष्णलेश्या-सम्बन्धी चार उद्देशक कहना चाहिए। ___हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं ॥ ४१ । १७-२०॥ ___ ४. एवं पम्हलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं वेमाणियाण य एतेंसि पम्हलेस्सा, सेसाणं नत्थि। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४१ । २१-२४॥ [४] इसी प्रकार पद्मलेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और

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