Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
७४२]
वैमानिकदेव, इनमें पद्मलेश्या होती है, शेष में नहीं होती ॥ ४१ । २१-२४॥
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् ।
५. जहा पम्हलेस्साए एवं सुक्कलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, नवरं मणुस्साणं गमओ जहा ओहिउद्देससु । सेवं तं चेव ।
[५] पद्मलेश्या के अनुसार शुक्ललेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्यों के लिए औधिक उद्देशक के अनुसार पाठ जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् ।
६. एवं एए छसु लेस्सासु चउवीसं उद्देसगा। ओहिया चत्तारि । सव्वेए अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ॥ ४१ । २५-२८ ॥
॥ इकचत्तालीसइमे सए : नवमाइअट्ठावीसइमपजंता उद्देसगा समत्ता ॥
[६] इस प्रकार इन छह लेश्याओं-सम्बन्धी चौवीस उद्देशक होते हैं तथा चार औघिक उद्देशक हैं। ये सभी मिलकर अट्ठाईस उद्देशक होते हैं।
'हे' भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४१ ॥ २५-२८॥
॥ इकतालीसवाँ शतक : नौवें से अट्ठाईसवें उद्देशक तक समाप्त ॥
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