Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
[४३९ सदैव रहते हैं। तीसवाँ अन्तरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में काल के अन्तर का निरूपण
२०७. पुलागस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ?
गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं अणंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं।
[२०७ प्र.] भगवन् ! (एक) पुलाक का अन्तर कितने काल का होता है ?
[२०७ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का होता है। (अर्थात्) काल की अपेक्षा—अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल का और क्षेत्र की अपेक्षा देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्तन का अन्तर होता है।
२०८. एवं जाव नियंठस्स। [२०८] इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक जानना। २०९. सिणायस्स० पुच्छा। गोयमा ! नत्यंतरं। [२०९ प्र.] भगवन् ! स्नातक का अन्तर कितने काल का होता है ? [२०९ उ.] गौतम ! उसका अन्तर नहीं होता। २१०. पुलागाणं भंते ! केवतियं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं संखेजाई वासाइं। [२१० प्र.] भगवन् ! (अनेक) पुलाकों का अन्तर कितने काल का होता है ? [२१० उ.] गौतम ! उनका अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट संख्यात वर्षों का होता है। २११. बउसाणं भंते ! ० पुच्छा। गोयमा ! नत्थंतरं। [२११ प्र.] भगवन् ! बकुशों का अन्तर कितने काल का होता है ? [२१,१ उ.] गौतम ! उनका अन्तर नहीं होता। २१२. एवं जाव कसायकुसीलाणं। [२१२] इसी प्रकार कषायकुशीलों तक का कथन जानना चाहिए।
२१३. नियंठाणं० पुच्छा। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९०६