Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 852
________________ [७२१ · सत्तमे सन्निपंचेंदियमहाजुम्मसए : एक्कारस उद्देसगा सप्तम संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक १. सुक्कलेस्ससयं जहा ओहियसयं, नवरं संचिट्ठणा ठिती य जहा कण्हलेस्ससते। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४०।७।१-११॥ ॥ चत्तालीसइमे सए : सत्तमं चउत्थं सयं समत्तं ॥४०-७॥ [१] शुक्ललेश्याशतक भी औधिक शतक के समान है। इनका संचिट्ठणाकाल और स्थिति कृष्णलेश्याशतक के समान है। शेष पूर्ववत्, पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत्। विवेचन-शुक्ललेश्यी की स्थिति पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त-सहित अनुत्तरदेवों की उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति की अपेक्षा समझनी चाहिए। ॥ चालीसवाँ शतक : सातवाँ अवान्तरशतक सम्पूर्ण॥ *** अट्ठमे सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए : एक्कारस उद्देसगा अष्टम संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक भवसिद्धिक संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतकवक्तव्यता-निर्देश १. भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? ० जहा पढमं सन्निसयं तहा नेयव्व भवसिद्धियाभिलावेणं, नवरं 'सव्वपाणा० ? णो तिणढे समढे।' सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४०।८।१-११॥ ॥ चत्तालीसइमे सते अट्ठमं सयं॥ ४०-८॥ [१ प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त भवसिद्धिकसंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! प्रथम संज्ञीशतक के अनुसार भवसिद्धिक के आलापक से यह शतक जानना चाहिए। विशेष में [प्र.] भगवन् ! क्या सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यहाँ पहले उत्पन्न हुए हैं ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष पूर्ववत् जानना। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत्। ॥ चालीसवाँ शतक : अष्टम अवान्तरशतक सम्पूर्ण॥ ***

Loading...

Page Navigation
1 ... 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914